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अनेकांत की सिद्धि ]
तृतीय भाग
[ ३२१
तत्र विरोधयधिकरण्यसंशयव्यतिकरसंकरानवस्थाऽप्रतिपत्त्यभावाः प्रसज्यन्ते, तेषां तथा प्रतीत्यापसारितत्वात् । न च प्रकृतयोस्तथा प्रतीतिरसत्या सर्वदान्यथा' प्रतीत्यभावात् । तदेवं सति' विरोधाधुपालम्भश्चतुरस्रधियां मनो मनागपि न 'प्रीणयति वर्णादेरप्यभावप्रसङ्गात् । 'द्रव्यमेवैक', न वर्णादयो, विचारासहत्वाद्वर्णाद्येव' वानेकं, न द्रव्यं नाम, तस्य विचा
से सिद्ध है । रूपादि और द्रव्य इन दोनों में अव्यतिरिक्त, साधन, अशक्य विवेचन समवाय रूप मौजूद हैं और वह साधन, ऐक्य और एक वस्तु रूप साध्य का निर्णय करता है।
शंका-धर्मी-द्रव्य और पर्याय में भेद को ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा बाधा आने से आपका अव्यतिरिक्तत्व हेतु कालात्ययापदिष्ट है।
समाधान-यह कहना भी सत्य नहीं है। वह प्रत्यक्ष प्रमाण कथंचित् भिन्न रूप ही धर्मीद्रव्य और पर्यायों को ही ग्रहण करता है । क्योंकि सर्वथा भिन्न दो वस्तुओं में द्रव्य और पर्याय का लक्षण ही असंभव है। जैसे कि सर्वथा भिन्न सह्याचल और विध्याचल में द्रव्य और पर्यायपना असंभव है।
शंका-पुनः भिन्न-भिन्न द्रव्य और पर्याय में अभेद कैसे हो सकता है ? विरोधादि दोषों का प्रसंग आ जावेगा।
___ समाधान—ऐसा नहीं कहना ! क्योंकि उस प्रकार भेदाभेद रूप से ही उपलब्धि होती है। मेचक-चित्र ज्ञान के समान, अथवा सामान्य-विशेष के समान। उन द्रव्य और पर्याय में विरोध, वैयधिकरण्य, संशय, व्यतिकर, संकर, अनवस्था, अप्रतिपत्ति और अभाव इन आठ दोषों का प्रसंग नहीं आता है। क्योंकि जिस प्रकार से चित्र ज्ञान में भेदाभेद रूप दोनों की प्रतीत आती है, उसी प्रकार से द्रव्य और पर्याय में भेदाभेद रूप प्रतीति के होने से इन दोषों का निराकरण हो जाता है।
इन द्रव्य और पर्याय में होने वाली भेदाभेद रूप प्रतीति असत्य भी नहीं है। क्योंकि हमेशा ही भेदाभेद-प्रतीति को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार की प्रतीति का अभाव है।
1 भेदाभेदव्यतिरेकेण । दि० प्र०। 2 आह स्याद्वादी एवं सत्यभेदोपलम्भन्ते सत्यपि विरोधाद्यष्टदोषदर्शनमारोप्यते चेत्परेण स्यात्तदाविरोधाधुपलम्भो विदुषां मनो न परितोषयति प्रीणयति चेत्तदा प्रत्यक्षदृश्यमानां योगसौगताभ्युपगतानां वर्णादिपर्यायाणामभावः प्रसजति सांख्यः सौगतमाह । एकमेव द्रव्यं भाति न वर्णरसादयः । कुतो विचाराक्षमत्वात् = तया सौगतः सांख्यमाह । अनेक वर्णाद्येव भाति न तु द्रव्यं कुतः तद्रव्यं विचार्यमाणं सत् सर्वथा नोत्पद्यते यतः । एवं सर्वथैकत्वानेकत्व व्यवस्थापको सांख्यसौगतौ परस्परं न वर्तेते। कुतः । उभयत्र दूषणसमाधानयोः तुल्यत्वात् । द्वयोर्द्रव्यपर्याययोरपि अर्थस्वभावे न संबन्धात्-द्रव्यमर्थधर्मः पर्यायोप्यर्थधर्मः । दि० प्र० । 3 दोषः । दि० प्र० । 4 तुष्टि न नयति । ब्या०प्र०। 5 रसादि । ब्या० प्र०। 6 न केवलं द्रव्यपर्याययोः कथञ्चिदेकत्वस्य । ब्या० प्र० । 7 एतदेव भावयन्नाह । दि० प्र० । 8 ब्रह्माद्वैतवादी । ब्या० प्र० । 9 सौगतः । दि० प्र० ।
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