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अनेकांत की सिद्धि ]
तृतीय भाग
[ २४६
स्थानात्, 'सद्व्यपृथिवीत्वादिजात्यात्मनैकत्वसंख्यात्मना शक्तिविशेषान्वयात्मना च तदभेदात् तथैव प्रत्यभिज्ञानात्, तदेव मृद्रव्यमसाधारणं घटाकारतया नष्टं कपालाकारतयोत्पन्नमिति प्रतीतेः सकलबाधकरहितत्वात्, य एवाहं सुख्यासं स एव च दु:खी सम्प्रतीत्येकपुरुषप्रतीतिवत् । नन्वेवमुत्पादव्ययध्रौव्याणामभेदात्ः कथं त्रयात्मकवस्तुसिद्धिः ? 'तत्सिद्धौ वा कथं तत्तादात्म्यम् ? विरोधादिति चेन्न, सर्वथा 'तत्तादात्म्यासिद्धेः कथंचिल्लक्षणभेदात् । तथा हि । उत्पादविगमध्रौव्यलक्षणं स्याद्धिन्नमस्खलन्नानाप्रतीते: रूपादिवत् । सर्वस्य वस्तुनो' नित्यत्वसिद्धरुत्पादविनाशप्रतीतेरस्खलत्वविशेषणमसिद्धमिति चेन्न, कथंचित्क्षणिक
यह हेतु असिद्ध भी नहीं है । क्योंकि मृत्पिण्ड आदि द्रव्य को छोड़कर नाश और उत्पाद का ही अभाव है। पर्याय अपेक्षा से नाश और उत्पाद भिन्न लक्षण सम्बन्धी हैं। किन्तु वे सर्वथा भिन्न नहीं हैं उनका जात्यादि रूप से अवस्थान देखा जाता है।
सत्, द्रव्यत्व, पृथ्वीत्वादि सामान्य रूप से एकत्व संख्या रूप से एवं उत्पाद-विनाशादि रूप शक्ति विशेष अन्वय रूप से उन दोनों में अभेद है और उसी प्रकार से प्रत्यभिज्ञान भी हो रहा है वही असाधारण मिट्टी रूप द्रव्य घटाकार से नष्ट हुआ और कपालाकार से उत्पन्न हुआ प्रतीति में आ रहा है । इस प्रतीति में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती है।
जो 'मैं ही सुखी था वही मैं इस समय दुःखी हूँ' इस प्रकार से एक ही पुरुष को अनुभव होता हुआ देखा जाता है।
! उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य में भेद न होने से वस्तु त्रयात्मक कैसे है ? ] शंका-तब तो उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य इन तीनों में अभेद होने से वस्तु प्रयात्मक है यह बात कैसे सिद्ध होगी? अथवा वस्तु के त्रयात्मक सिद्ध हो जाने पर उन उत्पादादि तीनों में तादात्म्य कैसे सिद्ध होगा? क्योंकि विरोध आता है।
1 सत्त्वद्रव्यत्व । ब्या० प्र० । 2 वस्त्वपेक्षया । ब्या० प्र०। 3 वस्तुन आत्मकत्वसिद्धौ। दि० प्र०। 4 भेद दि० प्र०। 5 अबाधितम् । दि० प्र०। 6 स्याद्वाद्याह । एवं न । कस्मात्तत्तेषामुत्पादव्ययध्रौव्याणां सर्वथा तादात्म्यं न सिद्धयति यतः पुनः कस्मात् कथञ्चिद् लक्षणभेदात् । तथाहि । अत्रानुमानमस्ति एकस्मिन् वस्तुन्युत्पादविगमध्रौ. व्यलक्षणं पक्ष: कथञ्चिभिन्नं भवतीति साध्यो धर्मः । अप्रतिहत नानाप्रतीतेरिति हेतुः । यथैकस्मिन् कर्कटिकादिद्रव्ये रूपरसादयः कथञ्चिद्भिन्ना अनेकेन्द्रियग्राह्यत्वात् । अस्खलन्नानाप्रतीतिकं चेदं तस्मात्स्याभिन्नम् । दि० प्र० । 7 तेषामुत्पादादीनाम् । ब्या० प्र०। 8 अस्खलन्ती चासो नाना प्रतीतिश्च तस्याः । दि० प्र०। 9 अत्राह सर्वथा नित्यवादी हे स्याद्वादिन् सर्व जीवादिवस्तु नित्यं सिद्धं यतस्तत उत्पादविनाशप्रतीतेरिति हेतोः अस्खलनत्वमिति विशेषणमसिद्धमिति चेत् स्याद्वाद्याह । एवंन । वस्तुनः कथंचित्क्षणिकत्वसाधनात् =तत एव कथञ्चित् क्षणिकत्वसाधनादेव ध्रौव्यप्रतीतेरपि अस्खलत्वमिति विशेषणं सिद्धम् । कस्माद्वस्तुनः सर्वथा क्षणिकत्वप्रतिषेधात । दि.
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