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अष्टसहस्री
[ तृ० प० कारिका ५७ 'विनश्यत्युत्पद्यते च सर्व वस्तु विशेषानुभवात् । भ्रान्तविशेषदर्शनेन शुक्ले शंखे पीताद्या-कार ज्ञानलक्षणेन व्यभिचार इति चेन्न, व्यक्तमिति विशेषणस्यानुवृत्ते । न हि भ्रान्तं विशेष-दर्शनं व्यक्तं येन तदपि पूर्वाकारविनाशाजहद्वत्तोत्तराकाराविनाभावि स्यात् । न च प्रकृते विशेषदर्शनं व्यक्तं बाधकाभावात् । नित्यैकान्तग्राहि प्रमाणं बाधकमिति चेन्न, तस्य' निरस्तत्वात् । न चैवं 'भिन्नप्रत्ययविषयत्वादुत्पादविनाशमात्रं स्थितिमात्रं च पदार्थान्तरतयावतिष्ठते, तस्य वस्त्वेकदेशत्वान्नयप्रत्ययविषयत्वात्, स्थित्यादित्रयस्य समुदितस्य वस्तुत्वव्यव
समाधान-ऐसा नहीं कहना । क्योंकि 'व्यक्त' यह विशेषण चला आ रहा है तथा यह भ्रांत विशेष दर्शन व्यक्त नहीं है कि जिससे वह भी पूर्वाकार के विनाश को न छोड़ता हुआ उत्तराकार के साथ अविनाभावी होवे। किंतु प्रकृत जीवादि में विशेष दर्शन-उत्पादादि से भेद दर्शन अव्यक्त नहीं है क्योंकि बाधक प्रमाण का अभाव है । अर्थात् श्वेत शंख में जो पीताकार का अवभास हो रहा है वह उसमें पूर्वाकार के विनाश के साथ अविनाभूत होकर नहीं हो रहा है, क्योंकि पीताकार रूप भ्रांत ज्ञान उत्पन्न होकर उस शंख के मूल शुक्लाकार का नाश नहीं करता है। जिसकी दृष्टि में रोगादि नहीं हैं उसे वह शंख शुक्ल ही दिख रहा है। तथैव जीवादि वस्तुओं में जो विशेष दर्शन है वह अव्यक्त अर्थात् प्रमाण से बाधित नहीं है।
शंका-नित्यकांत को ग्रहण करने वाला प्रमाण उस विशेष दर्शन का बाधक है।
समाधान-नहीं। उसका तो हमने पहले हो खण्डन कर दिया है। इस प्रकार से भिन्न ज्ञान का विषय होने से उत्पाद विनाश मात्र और स्थिति मात्र वस्तु पदार्थांतर रूप से व्यवस्थित नहीं है। क्योंकि वे उत्पाद विनाश मात्र और स्थितिमात्र वस्तु के एक देश रूप होने से नय के विषय हैं। अर्थात् उत्पाद विनाशमात्र तो पर्यायाथिक नय के विषय हैं और स्थिति द्रव्याथिकनय का विषय है एवं परस्पर सापेक्ष रूप से समुदित उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य रूप त्रयात्मक ही वस्तु व्यवस्थित है। क्योंकि वह समुदित वस्तु प्रमाण का विषय है।
___ भावार्थ-'सहैकत्रोदयादि सत्' ऐसा कारिका में प्रतिपादित किया गया है। तथैव "उत्पाद, व्यय, ध्रौव्ययुक्तं सत्" यह श्री सूत्रकार उमास्वामी आचार्य का कथन है। इस कारिका द्वारा तीन प्रश्नों का समाधान किया गया है । वे तीन प्रश्न ये हैं
(१) वस्तु उत्पाद, विनाशरहित स्थिति मात्र कैसे है ? (२) विनाश, उत्पादस्वरूप मात्र कैसे है ? (३) उत्पाद, व्यय ध्रौव्य रूप त्रयात्मक कैसे है ?
1 स्थितिप्रकारेण । ब्या०प्र०। 2 भेद । दि०प्र०। 3 अनुवर्तनात् । दि०प्र०। 4 भ्रान्तं विशेषदर्शनम् । दि० प्र० । 5विनाशाजहद्वत्तश्चासावाकारश्च । दि० प्र०। 6 जीवादिवस्तुनि | दि० प्र० । 7 नित्यकान्तग्राहिप्रमाणस्य प्राक प्रपञ्चेन निषिद्धत्वात । दि० प्र०। 8 स्थित्यादीनाम् । न्या०प्र० ।
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