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अनेकांत की सिद्धि ।
तृतीय भाग
[ २४३
देव घटविनाशकपालोत्पादयोरवलोकनात् । ततो घटावयवेषु कपालेषु क्रियेवोत्पद्यते इति चेत्सवैको हेतुस्तयोरस्तु । क्रियातोवयव विभागस्यवोत्पत्तिरिति चेत्स एवैकं कारणमनयोरस्तु । विभागात्तदवयवसंयोगविनाश एव दृश्यते इति चेत् स एव तयोरेकं निमित्तमस्तु । तदवयवसंयोगविनाशादवयविनो घटस्य विनाश इति चेत्स' एव कपालानां तदवयवानां प्रादुर्भावः । इति कथं नैकहेतुनियमः सिध्येत् ? महास्कन्धावयवसंयोगविनाशादपि लघुस्कन्धोत्पत्तिदर्शनात् "भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते' इति वचनात् ।
विनाश और कपाल का उत्पाद देखा जाता है। यदि आप ऐसा कहें कि घट के अवयव रूप कपालों में ही क्रिया उत्पन्न होती है तब तो वह क्रिया ही घट विनाश और कपालोत्पाद इन दोनों में एक हेतु होवे ।
शंका-क्रिया से अवयव के विभाग की ही उत्पत्ति होती है। समाधान-तब तो अवयव विभाग ही विनाश और उत्पाद इन दोनों में एक कारण होवे । शंका-विभाग से उस घड़े के अवयवों के संयोग का विनाश ही देखा जाता है ।
समाधान-तब तो वही इन दोनों में एक निमित्त होवे । अर्थात् संयोग का विनाश ही उत्पाद विनाश में कारण होवे।
शंका-उसके अवयव के संयोग का विनाश होने से अवयवी घट का विनाश होता है।
समाधान-पुनः वही कपाल रूप उसके अवयवों का प्रादुर्भाव है । इसलिये एक हेतु मुद्गरादि का घट विनाश और कपाल उत्पाद में नियम क्यों नहीं सिद्ध होगा?
महास्कंध-घट के अवयव संयोग के विनाश से भी लघुस्कंध (कपालमाला) रूप की उत्पत्ति देखी जाती है। "भेदसंघातेभ्य उत्पद्यते" यह श्री उमास्वामी आचार्य वर्य का सूत्र है। अर्थात् महास्कंध रूप घट के भेद से कपाल रूप लघु कार्य उत्पन्न होते हैं और लघु स्कंधों के संघात से महाकार्य उत्पन्न होते हैं । ऐसा इस सूत्र का भावार्थ है ।
शंका-यह दर्शन मिथ्या ही है एवं सूत्रकार के वचन भी मिथ्या हैं। क्योंकि बाधक प्रमाण का सद्भाव पाया जाता है।
समाधान-बाधक प्रमाण क्या है ? कहिये।
शंका-'अपने परिमाण की अपेक्षा अणु परिमाण कारण से बने हुये कपाल हैं, क्योंकि कार्य हैं । पट के समान ।" यह अनुमान बाधक हैं।
___समाधान-नहीं। यह उदाहरण साध्य विकल है। हम आपसे पूछते हैं कि पटाकार से परिणत नहीं हुये तंतु पट के समवायी हैं या पटाकार से परिणत हुये तंतु पट के समवायी हैं ?
1 घटः । दि० प्र०। 2 तदवयवसंयोगविनाशः । दि० प्र० । 3 घटस्य विनाशः । दि० प्र०।
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