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अनेकांत की सिद्धि ]
तृतीय भाग
[ २४५
न चैवं परिणामपरिणामिनोरभेद: स्यात्, प्रत्ययभेदात्कथंचिद्भेदसिद्धेः परस्यापि तद्भेदे विवादाभावात् तन्तुद्रव्यपटपर्याययोरन्वयव्यतिरेकप्रत्ययविषयत्वाच्च । तन्तुद्रव्यं हि प्राच्यापटाकारपरित्यागेन तन्तुत्वापरित्यागेन चापूर्वपटाकारतया परिणमदुपलभ्यते पटाकारस्तु पूर्वाकाराव्यतिरिक्त इति सिद्धं, सर्वथा त्यक्तरूपस्यापूर्वरूपवतिन एवोपादानत्वायोगादपरित्यक्तात्मपूर्वरूपवर्तिवत् तथाऽप्रतीतेन॒व्यभावप्रत्यासत्तिनिबन्धनत्वादुपादानोपादेयभावस्य । भावप्रत्यासत्तिमात्रात्तद्भावे' समानाकाराणामखिलार्थानां तत्प्रसङ्गात्, कालप्रत्यासत्तेस्तद्भावे पूर्वोत्तरसमनन्तरक्षणवर्तिनामशेषार्थानां तत्प्रसक्तेः देशप्रत्यासत्तेस्तद्भावे समानदेशानामशेषतस्तद्भावापत्तेः सद्व्यत्वादिसाधारणद्रव्यप्रत्यासत्तेरपि' तद्भावानियमात् । असाधारणद्रव्यप्रत्यासत्तिः पूर्वाकारभावविशेषप्रत्यासत्तिरेव च निबन्धनमुपादानत्वस्य स्वोपादेयं परिणाम प्रति निश्चीयते । तदुक्तं
है। जिस प्रकार से तंतु समूह यदि अपने पूर्व रूप को नहीं छोड़े तो वस्त्र के प्रति उपादान नहीं हो सकता है । क्योंकि उस प्रकार से प्रतीति नहीं आती है। तथैव उपादान उपादेय भाव भी द्रव्य (तंतु) और भाव (पट) की प्रत्यासक्तिपूर्वक ही होता है ।
___ यदि भाव की प्रत्यासक्ति मात्र से उपादान उपादेय भाव स्वीकार करेंगे तब तो समान आकार वाले अखिल तंतु पिंडों में उस उपादान उपादेय भाव का प्रसंग आ जायेगा। यदि केवल काल प्रत्यासक्ति से उपादान उपादेय भाव मानोगे तब तो पूर्वोत्तर समनंतर क्षणवर्ती अशेष पदार्थ-तंतुओं में उसी उपादान उपादेय का प्रसंग आ जायेगा। तथैव देश प्रत्यासक्ति से सद्भाव मानने पर समान देश वाले मत्पिडादिकों में भी अशेषरूप से उपादान उपादेय भाव की आपत्ति आ जायेगी। सद्रव्यत्व आदि साधारण द्रव्य की प्रत्यासक्ति से भी उस उपादान उपादेय भाव का नियम नहीं बनता है। किंतु असाधारण द्रव्य की प्रत्यासक्ति और पूर्वाकार भाव विशेष प्रत्यासक्ति उपादान का कारण है जो कि अपने उपादेय परिणाम के प्रति निश्चित किया जाता है । अर्थात् आतान वितानीभूत तंतु द्रव्य असाधारण द्रव्य प्रत्यासक्ति है ओर तंतुओं का आतान वितान रूप पूर्वाकार भाव विशेष प्रत्यासक्ति है। ये असाधारण द्रव्य प्रत्यासक्ति और विशेष भाव प्रत्यासक्ति ही वस्त्ररूप उपादेय कार्य के प्रति उपादान कारण माने गये हैं। कहा भी है
1 तन्तुद्रव्यपटपर्याययोरन्वयव्यतिरेकप्रत्ययविषयत्वं सिद्धम् । दि० प्र०। 2 सर्वथा त्यक्तरूपस्य सौगताभ्युपगतस्य मूलतो विनष्टस्य क्षणस्योत्तररूपवतिन एवोपादानत्वं घटते । अपरित्यक्तात्मनः सांख्याभ्युपगतस्य सर्वथा नित्यस्य पूर्वरूपतिन उपादानत्व संभवति । कूतस्तथा प्रतीतिरस्ति यतः=उपादानस्य द्रव्यसंबन्धो नित्यमुपादेयस्य पर्यायसंबंधो निमित्तम् । दि०प्र० । 3 क्षणिकस्यापूर्वरूपत्वम् । ब्या० प्र०। 4 पर्याय । ब्या० प्र० । 5 विवक्षितपट प्रत्यविव. क्षिततन्तुपिण्डानां मतपिण्डानाञ्च । ब्या०प्र० । 6 अशेषपदार्थानाम् । दि० प्र० । 7 तद्रव्यत्वादि । इति पा० । सत्सामान्यद्रव्य । दि० प्र० । 8 उपादानोपादेयभावः। दि० प्र० । 9 पर्यायविशेषः। दि०प्र० ।
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