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अष्टसहस्री
[ तृ० ५० कारिका ५०
भावादवाच्यत्वं नैरात्म्यमिति च ? 'अशक्यसमयत्वादनभिलाप्यमर्थरूपमिति चेन्न, कथं'चिच्छक्यसंकेतत्वाद् । 'दृश्यविकल्प्यस्वभावत्वात्परमार्थस्य प्रतिभासभेदेपीत्युक्तम् । न हि दृश्यस्वभाव एव परमार्थों न पुनर्विकल्प्यस्वभावः 'सामान्यं, विशेषवत्सामान्यस्यापि वस्तुरूपत्वसाधनादन्यथा प्रतीत्यभावात् सामान्यविशेषात्मनो जात्यन्तरस्य प्रत्यक्षादौ प्रतिभासनाच्च । न चैवं दृश्यलक्षणेषु' संकेतकरणाशक्तावपि विकल्प्ये सामान्ये क्वचिदशक्यसंकेतत्वं येनाशक्यसमयत्वादनभिलाप्यमर्थरूयं भवेत्, कथंचिच्छक्यसंकेतत्वसिद्धेः । स्यान्मतं 'संकेतितार्थस्य शब्दविषयस्य व्यवहारकालेननुगमनाद्विषयिणः शब्दस्य न तद्वाचकत्वमन्य
बौद्ध-पदार्थ में समय संकेत करना अशक्य होने से पदार्थ का स्वरूप अवाच्य है न कि पदार्थ का अभाव होने से वह अवाच्य है।
जैन-ऐसा नहीं कह सकते । कथंचित् सामान्य रूप से संकेत करना है क्योंकि दृश्य और विकल्प्य स्वभाव होने से परमार्थ में प्रतिभास के होने पर भी संकेत होता है ऐसा प्रथम परिच्छेद में "विरोधान्नोभयैकात्म्यं" इस कारिका में कह दिया गया है। अर्थात् निर्विकल्प ज्ञान के द्वारा ग्राह्य पदार्थ दृश्य कहलाता है और विकल्प ज्ञान के द्वारा ग्राह्य घट पठादि विकल्प कहलाते हैं । ये दोनों परमार्थ हैं अतः प्रतिभास भेद होने पर भी संकेत करना शक्य ही है।
दृश्य स्वभाव ही परमार्थ हो किन्तु विकल्प्य स्वभाव सामान्य परमार्थ न हो ऐसा तो है नहीं। विशेष के समान सामान्य भी वस्तु रूप सिद्ध है क्योंकि अन्यथा प्रतीति का अभाव है। सामान्य विशेषात्मक रूप जात्यंतर वस्तु ही प्रत्यक्ष आदि ज्ञान में प्रतिभासित होती है। अतः स और विशेष दोनों वस्तु भूत-परमार्थ हैं। इस प्रकार से दृश्य लक्षण पदार्थों में संकेत करना शक्य न होने पर भी किसी विकल्प्य सामान्य में संकेत करना अशक्य नहीं है कि जिससे संकेत करना शक्य न होने से पदार्थ का स्वरूप अवाच्य हो जावे । अर्थात् नहीं हो सकता है। क्योंकि पदार्थ में कथंचित् संकेत करना शक्य है यह बात सिद्ध है।
बौद्ध-शब्द का विषयभूत संकेतित पदार्थ व्यहार काल में अर्थात् "घटमानय' इत्यादि में
1 अत्राह सौगतः । हे स्याद्वादिन् स्वलक्षणलक्षणमर्थरूप मनभिलाप्यं स्यात्कस्मात् अशक्यसंकेतत्वात् । क्षण क्षयिणोर्थस्य नामादिकरणः सङ्केतः कतु न शक्यते इति चेत्र । कस्मादर्थस्य कथञ्चित्सङ्केतः कर्तुं शक्यते यतः । दि० प्र०। 2 स्वलक्षण । दि० प्र० । 3 स्याद्वाद्याह हे सौगत असत्यस्य भवदभ्युपगतस्यार्थस्य संकेतकरणंनास्ति अस्मदभ्युपगतार्थस्य कथञ्चिच्छक्यासक्रेतत्वं घटते । दि० प्र० । 4 अर्थस्य। दि० प्र०। 5 विकल्पविषयात्वाद्विकल्पमपि स्वलक्षणम् । दि० प्र०। 6 स्वलक्षणस्य । दि० प्र० । 7 सामान्य विशेषात्मा कोर्थः यथा विशेषो वस्तु तथासामान्यमपि वस्तुरूपमन्यथाप्रतीतिर्नदृश्यते-सामान्यविशेषात्मकं जात्यन्तररूपं वस्तु प्रत्यक्षादिज्ञाने प्रतिभासते यतः । दि० प्र०। 8 सामान्यं विशेषः विशेषवत् । इति पा० । दि० प्र०। 9 दृश्यस्वलक्षणे स्वसंकेत इति । पा० । दि० प्र० । 10 क्षणिकत्वात्तयोः घट शब्दयोः । ब्या० प्र० ।
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