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नित्य एकांतवाद का खण्डन ]
तृतीय भाग
प्रमाणकारकर्व्यक्तं' व्यक्तं चेदिन्द्रियार्थवत् ।
ते च नित्ये विकार्य किं साधोस्ते शासनाबहिः ॥३८॥ न हि प्रमाणं नित्यं नाम, तत्कृताभिव्यक्तेः प्रमितिरूपाया महदहङ्कारादौ व्यक्तात्मनि नित्यत्वप्रसङ्गात् । नापि कारकं नित्यं, तद्विहिताभिव्यक्तेरुत्पत्तिरूपायाः' सातत्य
[ इसी बात को आगे श्रीसमंतभद्रस्वामी कारिका द्वारा स्पष्ट करते हैं। ]
इन्द्रिय द्वारा विषयों की है, अभिव्यक्ति जैसे वैसे । कारक और प्रमाणों द्वारा, वे अव्यक्त प्रगट होते। ये प्रमाण कारक दोनों ही, नित्य सर्वथा सांख्य कहें।
भगवन् ! तव शासन से बाहर, विधि क्रिया भी हो कैसे ॥३८॥ कारिकार्थ-जिस प्रकार इंद्रियों के द्वारा अर्थ अपने-अपने विषय के पदार्थ अभिव्यक्त किये जाते हैं, उसी प्रकार प्रमाण और कारकों के द्वारा व्यक्त-महान्, अहंकार आदि तत्व अभिव्यक्त किये जाते हैं। इस प्रकार से यदि सांख्य कहें तो उचित नहीं है। उनके यहाँ प्रमाण और कारक तो सर्वथा नित्य हैं, इसलिये हे भगवन् ! आपके शासन से बहिर्भूत उन सांख्यों के यहाँ विकार्य-अभिव्यक्तिया अवस्था परिणमन कैसे हो सकता है ? अर्थात् किसी भी प्रकार का अभिव्यक्ति रूप भी परिणमन नहीं हो सकता है ॥३८॥
भावार्थ-सांख्य का कहना है कि प्रकृति और पुरुष दो तत्त्व सर्वथा नित्य हैं प्रकृति को कारण रूप एवं पुरुष को प्रकृति, विकृति रहित माना है । प्रकृति से महान् (बुद्धि), महान् से अहंकार, अहंकार से ५ ज्ञानेन्द्रियाँ, ५ कर्मेन्द्रियाँ, ५ तम्मात्रायें और १ मन ये १६ गण उत्पन्न होते हैं । पाँच तन्मात्रा से ५ महाभूत होते हैं इनमें बुद्धि, अहंकार, ५ तन्मात्रा ये ७ तत्त्व, कारणरूप भी हैं कार्यरूप भी हैं। ५ ज्ञानेन्द्रिय, ५ कर्मेन्द्रिय, ५ भूत और मन ये १६ तत्त्व केवल विकार-कार्यरूप ही हैं और इनमें कार्यरूप व्यक्त तत्त्व अनित्य हैं ।
अतः प्रमाण और कारक व्यक्त तत्त्वों को अभिव्यक्त करते हैं प्रमाण द्वारा तो उनकी प्रमितिरूप अभिव्यक्ति और कारकों द्वारा उनकी उत्पत्तिरूप अभिव्यक्ति होती है इस तरह व्यक्त पदार्थों
1 ननु च प्रमाणकारकव्यापारविरोधो न भवति तैव्यंक्त रभिव्यक्तिविधानादित्याशंकायामाह । ब्या० प्र०। 2 तर्हि प्रमाणकारके नित्येस्तां को दोष इत्याह । ब्या० प्र० । 3 ततश्च । ब्या० प्र० । 4 वस्तूनां परिणामित्वम । तहि । दि० प्र०। 5 भगवतः । दि० प्र०। 6 अनेकान्तात्मकात =सांख्यसौगतमीमांस मते। दि० प्र०। 7 प्रमाण । दि० प्र०। 8 कारक । दि. प्र०। 9 महदहङ्कारादौ व्यक्तात्मनीति संबन्धः कार्यः । दि० प्र०।
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