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अष्टसहस्री
[ तृ० प० कारिका ४१
क्षणस्यैकस्य कार्यवैचित्र्यात् स्वभावभेदप्रसङ्गात्, तस्यैकस्वभावत्वं व्यवस्थापयतो रूपादिनानात्वाव्यवस्थापनात् ।
[ कारणस्वभावभेदमन्तरेण कार्यनानात्वं न संभवतीति जैनाचार्या सुतरां साधयति । ]
सकत् 'कारणस्वभावभेदमन्तरेण यदि कार्यनानात्वं, क्रमशोपि कस्यचिदपेक्षितसहकारिणः कार्यसन्ततिः किं न स्यात् ? 'सहकारिणस्तद्धेतुस्वभावमभेदयन्तोपि कार्यहेतवः
दीपक में अनेक कार्य देखकर भी स्वभाव भेद नहीं मानते है तब तो ककड़ी में भी रूपादि भेद मत मानों यदि ककड़ी में भेद मानते हो तो प्रदीप में भी स्वभाव भेद मान लो। या तो दोनों में स्वभाव भेद मानों या दोनों में मत मानों। क्योंकि ककड़ी में रूपादि भेद मानने से दीपक में स्वभाव भेद मानना पड़ेगा अथवा दीपक में न मानने से ककड़ी में भी रूपादि भेद नहीं बनेंगे।
दूसरा दूषण यह आता है कि
[ कारण में स्वभाव भेद माने बिना कार्यों में नानापना असंभव है इस बात को जैनाचार्य अच्छी
तरह सिद्ध कर रहे हैं। ] कारण में स्वभाव भेद को माने बिना भी यदि क्षणिक में युगपत अनेक कार्य होते हैं। तब तो सहकारी कारणों की अपेक्षा रखने वाले नित्य में भी क्रम से कार्य संतति क्यों नहीं होगी? क्योंकि तदेत स्वभाव में भेद को न करते हुये भी सहकारी कारण अनेक कार्य के हेतु हो जावें, क्षण क्षय के समान । क्या बाधा है ?
बौद्ध-जिस प्रकार से युगपत् अनेक कार्यों को उत्पन्न करते हुये क्षणिक स्वलक्षण के जो सहकारी कारण हैं वे उसमें उस स्वलक्षण से भिन्न अथवा अभिन्न कुछ भी अतिशय-स्वभाव भेद नहीं करते हैं।
जैन-तो क्या करते हैं ? बौद्ध-वे सहकारीकारण तो भिन्न-भिन्न स्वभाववाले कार्यों को ही करते हैं।
जैन-उसी प्रकार से नित्य में भी सहकारीकारण क्रम से नाना कार्यों को उत्पन्न करते हये उस नित्य में उससे भिन्न या अभिन्न कुछ स्वभाव भेद को नहीं करें अर्थात् जैसी व्यवस्था क्षणिक पक्ष में मानते हो वैसी ही नित्य पक्ष में भी मान लो क्या बाधा है ?
1 युगपत् । ब्या० प्र० । 2 स्याद्वाद्याह प्रदीपादेः क्षणिकस्य कारणस्वभाव विना यदि युगपत् कार्यनानात्वं स्यात्तदा अपेक्षितसहकारिकारणस्य नित्यस्य क्रमेण कार्यसंततिः किं न स्यादपितु स्यात् । कथं इत्युक्त क्षेत्रकालादिसहकारि. कारणानि । तस्य नित्यस्य हेतुस्वभावं न भेदयन्ति । तथापि कार्यभेदकाणि भवेयुः । यथा क्षणक्षयस्य स्वभावभेदं न भेदयन्ति सहकारिकारणानि कार्यकर्तृ'णि भवन्ति । दि० प्र० । 3 वत्तिकादाहादि । दि० प्र०। 4 नानाकार्यहेतुः । ब्या० प्र०। 5 आकारभेदम् । ब्या० प्र० ।
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