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क्षणिक एकांत का निराकरण ] तृतीय भाग
[ १४५ [ सवेदनाद्वैतं भेदभ्रांति बाधते न वा ? उभयपक्षे दोषानाहुः । । संविदद्वैतेन भेदभ्रान्तिबाधने बाध्यबाधकभावः । तदबाधने तस्याव्यवस्थितिः, प्रतिपक्षव्यवच्छेदाभावात् ।
[ कार्यकारणयोः सर्वथा भेदे सति जैनाचार्या दोषानवतारयति । ] संवृतिमात्रेण सत्यपि हेतुफलभावेऽकारणकार्यान्तरवत्सन्ततिर्न स्यादतादात्म्याविशेषात् । न हि कार्यकारणक्षणानामकार्यकारणक्षणेभ्यस्तादात्म्याभावकान्ते कश्चिद्विशेषो नैरन्तर्यादिः संभवति, तस्य भिन्नसंतानकार्यकारणक्षणेष्वपि भावात् । तत्स्वभावविशेषावक्लुप्तौ' तादात्म्ये कोऽपरितोषः ? कथंचित्तादात्म्यस्यैवैकसंतानक्षणानां स्वभावविशेषस्य
[ यह संवेदमाद्वैत भेद की भ्रांति का बाधक है या अबाधक ? उभय पक्ष में दोष दिखाते हैं। ]
यदि वह संवेदनाद्वैत भेद भ्रांति को बाधित करता है तब तो बाध्य बाधक भाव के होने से भी भेद का प्रसंग आ जाने से अद्वैत की सिद्धि नहीं हो सकती है।
यदि आप कहें कि यह संवेदनाद्वैत भेद भ्रांति को बाधित नहीं करता है तब तो भेद को सत्यत्व सिद्ध हो जाने से उस अद्वैत की व्यवस्था ही नहीं हो सकेगी। क्योंकि प्रतिपक्ष-जैन आदि द्वैतवादियों के निराकरण का अभाव हो जाता है। अर्थात संवेदनाद्वैत ने भेद भ्रांति को बाधित न किया तो भेद भ्रांति बाध्य और अद्वैत बाधक बन गया तब द्वैत हो गया। यदि संवेदनाद्वैत में भेद को बाधित नहीं किया तब तो जैन आदि सभी के द्वैत मत सिद्ध हो गये आपका अद्वैत एकांत कहाँ रहा ? अर्थात्
[ कार्यकारण में सर्वथा भेद है ऐसा बौद्ध के मानने पर जैनाचार्य दोषों को दिखाते हैं ] __ तथा हे बौद्ध ! संवृति मात्र से कारणकार्य भाव के मान लेने पर भी भिन्न अकार्य कारण के समान संतति सिद्धि नहीं होगी क्योंकि तादात्म्य अभेद का न होना दोनों में ही समान है । अर्थात् जैसे वस्त्ररूप कार्य का कारण मृत्पिड नहीं है और मृत्पिड रूप कारण का कार्य वस्त्र नहीं है । तथैव आपके यहाँ जैसे संवृति मात्र से कारण कार्य और अकारण कार्यातर में तादात्म्य नहीं है वैसे ही प्रत्येक क्षणों में परस्पर में भेद होने से अभेद नहीं है । यह भाव समझना ।
संवृति से कल्पित कार्य-कारगक्षणों का अकार्य-कारणक्षणों से तादात्म्य नहीं है । ऐसे भेदैकांत-- को मानने पर नैरंतर्यादि-संतति आदि कोई भेद सम्भव नहीं है। क्योंकि वह भेद भिन्न कार्य-कारण के क्षणों में भी मौजूद है।
1 उत्तरचित्रोत्पत्तिकारण भूतप्राक्तनचित्रक्षणाख्यवासनावसात प्रत्यभिज्ञानादिकं संभवतीति प्रत्यवस्थितं सौगतं प्रतिकार्यकारणभावं वस्तुत्वं निराकृत्ये दानीं संतानापेक्षया प्रेत्यभावादिकं संभवति सन्ताननियमश्चप्रत्यभिज्ञानादेशात्संभवतीति वदन्तं निराकुर्वन्तः कार्यकारणभावाभ्युपगमपूर्वकं कारिका प्रकारान्तरेण व्याख्यान्ति सत्वपीति । दि० प्र०। 2 सुगतेतर । ब्या० प्र० । 3 परिकल्पनायाम् । ब्या० प्र० ।
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