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अष्टसहस्री
[ द्वि० ५० कारिका २६ 'संवेदनवत्कथंचिदेकत्वमेव भवितुमर्हति। न च साध्यविकलं' चित्रज्ञानमुदाहरणं तस्यैकत्वसिद्धेः । तदवयवपृथक्त्वकल्पनायां चित्रनिर्भासो मा भूत् पृथग्वर्णान्तरविषयानेकसंतानकक्षणवत् । तत्र प्रत्यासत्तिविशेषः' कथंचिदैक्यात्कोऽपरः स्यात् ?
[ प्रत्यासत्त्यैकत्वकल्पना भवति इति मन्यमाने प्रत्यासत्ते विचारः क्रियते । ] देशप्रत्यासत्तेः शीतातपवातादिभिर्व्यभिचारात्, कालप्रत्यासत्तेरेकसमयत्तिभिरशेषाथैरनेकान्तात्, भावप्रत्यासत्तरेकार्थोद्भूतानेक पुरुषज्ञानरनैकान्तिकत्वाद् द्रव्यप्रत्यासत्तिरेव
है। उन चित्रज्ञान के अवयवों में कथंचित ऐक्य-तादात्म्य को छोड़कर अन्य और प्रत्यासत्ति विशेष क्या होगा?" अर्थात् बौद्ध का ऐसा कहना है कि उस चित्रज्ञान के अवयवों में प्रत्यासत्ति विशेष होने से चित्र में एकत्व सिद्ध है तब जैनाचार्य प्रश्न करते हैं कि कथंचित्-तादात्म्य को छोड़कर प्रत्यासत्ति विशेष और है ही क्या ? पुनः आगे देश, काल और भाव प्रत्यासत्ति में दूषण दिखाकर द्रव्य प्रत्यासत्ति को तादात्म्यरूप सिद्ध कर रहे हैं। [ प्रत्यासत्ति से एकत्व की कल्पना होती है ऐसी बौद्ध की मान्यता पर जैनाचार्य उस प्रत्यासत्ति
पर विचार करते हैं ] यदि आप कहें कि देश प्रत्यासत्ति है तो शीत, आतप, वायु आदि से व्यभिचार आ जाता है अर्थात् शीत, वायु, आतप आदि एक देश में पाये जाते हैं अतः इनमें देश प्रत्यासत्ति तो है फिर भी ये भिन्न-भिन्न हैं अत: इनमें एकत्व का अभाव है। यदि काल प्रत्यासत्ति मानों तब तो एक समयवर्ती अशेष पदार्थों से व्यभिचार आ जायेगा अर्थात् एक काल में एक साथ अनेकों पदार्थ रहते हैं फिर भी वे एक नहीं होते हैं। तथा यदि भाव प्रत्यासति कहें तो भी एक पदार्थ से उत्पन्न हये 'अनेक पुरुषों के ज्ञान से अनैकांत दूषण प्राप्त होता है।
___ अतएव पारिशेष न्याय से द्रव्य प्रत्यासत्ति ही संभव है और वह एक द्रव्य में तादात्म्य लक्षण है अतः वही प्रत्यासत्ति विशेष है। चित्रज्ञान में द्रव्य की अपेक्षा से कथंचित् तादात्म्य ही "एकत्व" इस व्यवहार का कारण सिद्ध होता है। "अन्यथा यदि आप कहेंगे कि-चित्रज्ञान में कथंचित ऐक्य का अभाव होने पर भी एकत्व का व्यवहार घटित हो जाता है। तब तो वेद्य, वेदक आकार में भी पृथक्त्वकांत का प्रसंग प्राप्त हो जायेगा अर्थात् भेदैकांत को मानने पर चित्रज्ञान नहीं बन सकेगा।" उन वेद्य वेदकाकार में "स्वभाव भेद के होने पर भी सह उपलब्धि के नियम से आप कथंचित् अभेद स्वीकार करेंगे तब तो चित्रज्ञान लक्षण एक संतान के ज्ञानों में समनंतर उपलब्धि के नियम से
1 चित्रकसंवेदने कथञ्चिदेकत्वं यथा तथा। ब्या० प्र० । 2 दृष्टान्ते ज्ञानरूपतया दार्टान्तिके द्रव्यरूपतया । ब्या० प्र० । 3 एकत्त्वम् । ब्या० प्र० । 4 आह सौगतः हे स्याद्वादिन् ! चित्रज्ञाने प्रत्यासत्ति विशेषऐक्यम् । इत्युक्त आह जैन: तत्र कथञ्चिदैक्यादपरः प्रत्यासत्तिविशेषक: स्यादपितु न कोपि तदेवेत्यर्थः । दि० प्र० । 5 एकत्वव्यवहारकारणत्वे नयादेशप्रत्यासत्तिस्तस्या अपि व्यभिचारात् । दि० प्र०। 6 नर्तकीक्षणादि । दि० प्र० । 7 एकनर्तकीक्षणसंजातनानापूरुषज्ञानयंभिचारोस्ति । देशादिकं चित्रप्रतिभासनिबन्धनं नेत्यर्थः । दि० प्र० ।
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