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अष्टसहस्री
[ द्वि० ५० कारिका ३६ मभेदं वा नान्योन्यरहित2 विषयीकरोति प्रमाणम् । न हि बहिरन्तर्वा स्वलक्षणं सामान्यलक्षणं' वा तथैवोपलभामहे यर्थकान्तवादिभिराम्नायते । इति भेदैकान्ताभावेऽभेदैकान्तासत्त्वे च परस्परनिरपेक्षतदुभयकान्तापाकरणेऽनुभयकान्तापसारणे च साध्ये स्वभावानुपलब्धिः; स्वयमुपलब्धिलक्षणप्राप्तस्य तस्यानुपलभ्यमानत्वसिद्धेः । न चेयमसिद्धा, सूक्ष्मस्थूलाकाराणां स्थूलसूक्ष्मस्वभावव्यतिरेकेण' प्रत्यक्षादावप्रतिभासनात्। न हि प्रत्यक्ष स्वलक्षणं सूक्ष्म परमाणुलक्षणं प्रतिभासते स्थूलस्य घटाद्यात्मनः प्रतिभासनात् ।
[ प्रत्यक्षज्ञाने परमाणव एव प्रतिभासन्ते न पुनः स्कन्धा इति बौद्धमान्यतां निराकुर्वन्त्याचार्याः । ] परमाणुष्वेवात्यासन्नासंसृष्टेषु "दृष्टौ प्रतिभासमानेषु कुतश्चिद्विभ्रमनिमित्तादात्मनि3 14परस्वीकार करते हैं किन्तु सच्चा प्रमाण सर्वथा भेद, अभेद या भेदाभेद को नहीं जानता है क्योंकि बहिरंग अथवा अंतरंग, स्वलक्षण (भेद) अथवा सामान्य लक्षण (अभेद) उसी प्रकार से एकांतरूप से हम लोगों को उपलब्ध नहीं हो रहा है कि जिस प्रकार से एकांतवादियों ने कथन किया है।
इस प्रकार से भेदैकांत के अभाव को साध्य करने में स्वभावानुपलब्धि हेतु है। तथैव अभेदैकांत का अभाव साध्य करने में, परस्पर निरपेक्ष तदुभयकांत के निराकरण को साध्य बनाने में और अनुभयकांत का अभाव साध्य करने में वही स्वभावानुपलब्धिरूप हेतु है क्योंकि स्वयं उपलब्धि लक्षण प्राप्त उन भेदाद्यकांत चतुष्टय की अनुपलब्धि सिद्ध ही है अर्थात् भेदाद्ये कांत स्वभाव से उपलब्ध ही नहीं हो सकते हैं। मतलब यह है कि भदैकांत, अभेदैकांत, उभयकांत और अनुभयकांत ये ये चारों ही एकांत उपलब्ध नहीं होते हैं अतः इन चारों एकांतों के अभाव को सिद्ध करने में इनके स्वभाव की उपलब्धि नहीं है यही हेतु दिया गया है । हमारा यह "स्वभावानुपलब्धि हेतु" असिद्ध भी नहीं है।
"सूक्ष्म-स्थल आकारों का स्थल-सूक्ष्म स्वभाव से व्यतिरिक्तरूप से प्रत्यक्षादि ज्ञान में प्रतिभास नहीं होता है।" प्रत्यक्षज्ञान में सूक्ष्म, परमाणु लक्षण स्वलक्षण प्रतिभासित नहीं होता है प्रत्युत घटादि स्वरूप से स्थूल वस्तुयें ही प्रतिभासित होती हैं। [ प्रत्यक्षज्ञान में परमाणु ही झलकते हैं स्कंध नहीं, बौद्ध की ऐसी मान्यता का आचार्य निराकरण करते हैं। ]
बौद्ध-निर्विकल्प प्रत्यक्ष में अत्यासन्न और असंसृष्ट-भिन्न-भिन्न परमाणु ही प्रतिभासित होते हैं, फिर भी किसी विभ्रम के निमित्त से या वासनाविशेष से अपने स्वरूप में और पर में
1 अद्वैतिनः। 2 परस्परनिरपेक्षं योगानुमतं वा। 3 भेदम् । 4 अभेदम्। 5 कथ्यते । 6 (पूर्वोक्तपक्ष चतुष्टयखण्डने साध्ये स्वभावानुपलब्धिहेतुरस्ति इत्यर्थः)। 7 भेदायेकान्तचतुष्टयस्य । 8 स्वभावानुपलब्धिः (हेतुः) । 9 यतः (सूक्ष्माणां स्थूलस्वभावापेक्षयैव स्थूलानां च सूक्ष्मस्वभावापेक्षयैव प्रतिभासनं, न तु तद्वयतिरेकेणेति भाव:) । 10 स्थूलस्वभावनिरपेक्षम् । 11 निर्विकल्पकप्रत्यक्षे। 12 स्थूलार्थस्य विभ्रमनिमित्ताद्वासनाविशेषात् । 13 कल्पिते स्थूलार्थज्ञाने। 14 परमाणौ ।
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