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पृथक्त्व एकांत का खण्डन ] तृतीय भाग
[ ३६ नाम गुणः स्यात्', एकत्र' तद्वति तदनभ्युपगमात् । अनेकस्थो' ह्यसौ गुण" इति कारिकाव्याख्यानं स्थितपक्षदूषणपरं प्रकाशितं प्रतिपत्तव्यम् ।
समस्त संख्यायें भी सिद्ध हैं और जो वस्तु एक नहीं है-अनेक है उसमें द्वित्वादि संख्याओं के सिवाय एकत्व संख्या भी सिद्ध है । तात्पर्य यह है कि द्वित्वादि संख्याओं के आधारभूत व्यक्तियों में प्रत्येक व्यक्ति में वह द्वित्वादि संख्या विद्यमान रहती है । यदि वह एक-एक में न हो तो दो आदि में वह दो आदि की अपेक्षा से भी नहीं रह सकती है, मतलब यह है कि जो जहाँ स्वभावतः नहीं है वह पर की अपेक्षा से भी वहाँ नहीं रह सकता । जैसे कि खरविषाण में स्वाभाविक और आपेक्षिक दोनों ही तरह की संख्या नहीं है।
इसलिये पृथक्त्वगुण एक साथ अनेकों में नहीं रहता है क्योंकि वह गुण है जो गुण होता है वह एक साथ अनेक जगह नहीं रहता है जैसे रूपादि गुण अर्थात् पर मत की अपेक्षा से सकल गुण निरंश माने हैं अतएव "गुणत्वात्" यह हेतु सामान्य से दिया है। इसी प्रकार से हमारा हेतु संयोगादि के साथ भी अनेकांत रूप नहीं है । क्योंकि वे संयोगादि गुण भी अनंशरूप होते हुये युगपत् अनेक द्रव्यों में रहते हैं यह बात असिद्ध है।
___ इसी कथन से पृथक्त्वैकांत पक्ष में भी पृथक्त्वगुण वाले दो पदार्थों की पृथक है। इस प्रकार से पृथक्त्व सिद्धांत के मान लेने पर वे दोनों पृथक्त्वगुण और पृथक्त्ववान् (दोनों पदार्थ) अपृथक्अभिन्न ही सिद्ध हो जावेंगे । इस प्रकार से उनमें एकत्व के हो जाने पर पृथक्त्व नाम का कोई गुण सिद्ध नहीं होगा क्योंकि एकत्र तद्वान्-पृथक्त्ववान् में उस पृथक्त्वगुण को न्याय के बल से स्याद्वादियों ने स्वीकार नहीं किया है कारण कि “अनेकस्थो ह्यसौ गुणः" इस कारिका के व्याख्यान को नित्यकांत पक्ष में दूषण देने वाला स्वीकार करना चाहिये ।
भावार्थ -जब यह पृथक्त्वगुण-पृथक्त्वगुण वाले दो पदार्थों से पृथक् माना जायेगा तब तो यह स्वाभाविक बात है कि उन पृथक्भूत पदार्थों में परस्पर में अपृथक्त्व-अभिन्नता ही सिद्ध हो जाती है और इस स्थिति में अनेकता के अभाव में इस पृथक्त्वगुण की सिद्धि कैसे हो सकेगी? क्योंकि यह गुण युगपत् अनेक द्रव्यों में रहने वाला माना गया है और अनेक द्रव्यों के पृथक्त्वगुण से भिन्न होने के कारण अनेकता सिद्ध ही नहीं होती है इसलिये पृथक्त्व नाम का कोई गुण सिद्ध नहीं होता है।
1 कुतः । दि० प्र० । 2 अभिन्नपदार्थे । दि० प्र० । 3 पृथक्त्वगुणः । ब्या० प्र० । 4 यतः । ब्या० प्र०। 5 तथा च नष्टपथकत्वं नाम गुणः स्यादितिभावः । ब्या० प्र० ।
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