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अष्टसहस्री
[ कारिका ७ तस्य' तेन कार्यकारणभावप्रदर्शन प्रमाणाभ्याम् । यथेदमस्मिन् सति भवति सत्स्वपि तदन्येषु समर्थेषु तद्धतुषु', 'तदभावे न भवतीति । एवं ह्यस्यासन्दिग्धं तत्कार्यत्वं समर्थितं भवति । अन्यथा केवलं तदभावे न भवतीत्युपदर्शनेऽन्यस्यापि तत्राभावे14 सन्दिग्धमस्य। सामर्थ्य स्यात्, "अन्यत्तत्र' समर्थ, तदभावे20 तन्न भूतमिति शङ्कायाः प्रतिनिवृत्त्यभावात् । एतन्निवृत्तौ पुननिवृत्तौ4 यदृच्छासंवादो 26मातृविवाहोचितदेशजन्मनः पिण्ड
अभाव है । इसीलिए व्यापक धर्म की अनुपलब्धि हो नित्य में अर्थक्रियाकारित्वलक्षण सामर्थ्य को बाधित करती है अर्थात् जहाँ पर क्रम अथवा युगपत् का अभाव है वहाँ पर अर्थक्रियाकारित्वलक्षण सामर्थ्य भी नहीं है।
इस प्रकार से क्रम और युगपत् के अभाव की अर्थक्रिया के अभाव के साथ व्याप्ति सिद्ध है अतः अनवस्था दोष का प्रसङ्ग नहीं आता है । इस प्रकार से सत्त्व आदि हेतु स्वभाव हेतु हैं इस बात का समर्थन कर दिया है एवं कार्यहेतु का भी समर्थन सिद्ध है। जो कार्य हेतु कारण को सिद्ध करने के लिये ग्रहण किया जाता है उसका उसके साथ अन्वय-व्यतिरेकरूप प्रमाण के द्वारा कार्यकारणभाव दिखलाना ही कार्यहेतु है जैसे कि जो धूमहेतु जिस अग्नि के होने पर होता है और उस अग्नि से भिन्न अन्य समर्थ पवन ईंधन आदि हेतुओं के होने पर भी उस अग्नि के अभाव में नहीं होता है। इसी प्रकार से इस धम को संदेहरहित अग्नि का कार्यपना समर्थित होता है, अन्यथा मल कारण (अग्नि) के अभाव धूम नहीं होता है इस प्रकार केवलव्यतिरेक को कहने पर अन्य भी पवन ईंधन आदि सहकारीकारण को भी उस धूमकार्य की उत्पत्ति में कारण मानना पड़ेगा एवं संदेह बना ही रहेगा।
"अन्य पवनादि कारण उस धूम आदि कार्य की उत्पत्ति में समर्थ है क्योंकि पवनादि के अभाव में वह धूम लक्षण कार्य नहीं होता है।" इस शङ्का का अभाव नहीं हो सकेगा एवं शङ्का की निवृत्ति हो जाने पर अर्थात् अग्नि के अभाव में धूम का अभाव प्रतीत ही है अग्नि में ही धूम रूप कार्य को
1 कारणस्य। (दि० प्र०) 2 इदमस्मिन्नित्त्यादिनोक्तान्वयव्यतिरेकलक्षणभावाभावप्रमाणाभ्यां कृत्वा कारणस्य कार्येण सह कार्यकारणत्वप्रकाशनं यत् । तत्कार्यहेतोः समर्थनं भवति । (दि० प्र०) 3 अन्वयव्यतिरेकाभ्याम् । 4 प्रत्यक्षामुपलंभाभ्यां तयोः कार्यकारणभावत्वं सिद्धयति । (दि० प्र०) 5 अग्न्यन्येषु पवनेन्धनादिषु । 6 धूमहेतुषु । 7 वन्ह्यभावे। 8 कार्यहेतोः । (दि० प्र०) १ वह्निकार्यत्वम् । 10 कारणस्य । (दि. प्र.) 11 अन्वयाभावे । 12 मूलकारणा (वह्नि) भावे। 13 सहकारिकारणस्य पवनेन्धनादेः। 14 कार्योत्पत्तौ। 15 विवक्षितकारणस्य वह्नः। 16 कारणम् । (दि० प्र०) 17 पवनादिकारणम्। 18 धूमरूपकार्योत्पत्तौ। 19 पवनाद्यभावे । 20 तदभावात् इति पा० । (दि० प्र०) 21 धूमलक्षणं कार्यम् । 22 अग्न्यभावे धूमनिवृतेः प्रतीयमानत्वादग्नेरेव तत्र धूमकार्यजनने सामर्थ्य न त्वन्यस्येत्याशङ्कायामाह । 23 कार्यस्य । 24 पुननिवृत्तिः इति पा० । (दि० प्र०) एतस्याभावे पुनरभावे पुनरभावः । अयं यदृच्छासंवाद उच्यते । स च दृष्टान्तेन दाढ्यते । (दि० प्र०) 25 भा। (दि० प्र०) 26 मातृविवाह उचितो यत्र ।
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