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प्रथम परिच्छेद
प्रागभावसिद्धि ]
[ १०६ 'तदेतदपि सुगतमतानुसरणं स्याद्वादवादिनामायातं, 'स्वमतविरोधात् । प्रागभावो ह्यनादिरिति 'तन्मतम् । 'तच्च घटस्य पूर्वानन्तरपर्यायमात्रप्रागभावस्योपगमे विरुध्यते । द्रव्यार्थादेशादनादिः प्रागभावोभिमत इति चेत् किमिदानीं मृदादिद्रव्यं प्रागभावः ? तथोपगमे कथं प्रागभावाभावस्वभावता घटस्य घटेत ? द्रव्यस्याभावासंभवात् । तत एव न जातुचिद् घटस्योत्पत्तिः स्यात् । यदि पुनः 14पूर्वपर्यायाः15 सर्वेप्यनादिसन्ततयो घटस्य प्रागभावोऽनादिरिति 16मतं तदापि प्रागनन्तरपर्यायनिवृत्ताविव 18तत्पूर्वपर्यायनिवृत्तावपि घटस्योत्पत्तिप्रसङ्गः ।
जैन-पूर्व की अनन्तर पर्याय ही घट का प्रागभाव नहीं है और न मिट्टी आदि द्रव्यमात्र ही घट का प्रागभाव है । तथा न उस घट के पूर्व की सकल सन्तति ही है।
चार्वाक-तब आपके यहाँ घड़े का प्रागभाव क्या है ?
जैन-हमारे यहाँ तो द्रव्यपर्यायात्मक ही प्रागभाव है । वह कथञ्चित् द्रव्य की अपेक्षा से अनादि है और वही कथञ्चित् पर्याय की अपेक्षा से सादि है । इसलिये हम स्याद्वादियों का सिद्धान्त (दर्शन) निराकुल-निर्दोष ही है।
भावार्थ-जैनाचार्यों ने कार्य होने की पूर्व की अन्तिम एक क्षणवर्ती पर्याय को प्रागभाव माना है। उस पर चार्वाक दोषारोपण करता है क्योंकि यह चार्वाक प्रागभाव को मानता ही नहीं है। उसका कहना है कि यदि पूर्व की अन्तिम क्षण पर्याय को ही प्रागभाव कहोगे तो प्रागभाव का अभाव-नाश करके कार्य उत्पन्न होता है अतः कुम्भकार ने चाक पर मिट्टी का पिण्ड रखा है उससे शिवक, छत्रक, स्थास आदि पर्यायें हो रही हैं उनमें प्रागभाव तो आपने माना नहीं है अतः वहां उन पर्यायों में भी प्रागभाव का अभाव होने से घट बन जाना चाहिये।
और यदि आप जैन उन पर्यायों में इतरेतराभाव की कल्पना करके कार्य का निषेध करो तब तो अन्तिम पर्याय में भी पूर्व पर्यायों से इतरेतराभाव है अतः अन्त में भी कार्य नहीं बनेगा एवं आप जैनों के यहाँ बौद्धमत के अनुसरण का भी प्रसङ्ग आ जावेगा, क्योंकि बौद्धों के यहाँ भी पूर्व क्षण का विनाश होकर ही उत्तरक्षण की उत्पत्ति होती है और आपने भी पूर्व अव्यवहित क्षणरूप प्रागभाव का नाश
1 सौगत आह यदुक्तं स्याद्वादिना प्रागनन्तरपरिणामलक्षणप्रागभावविनाशे कार्य जायते । तदेतत्सुगतमतप्रवेश: समायातः स्याद्वादिनाम् । यथा सुगतमतावलंबिनां समनन्तरक्षणः स्वयं विनश्योत्तरक्षणं जनयतीति । तथा सति स्याद्वादिनां स्वमतं विरुद्धयते । -तहि स्याद्वादिमतं किमिति स्वयमाशंक्याह । प्रागभावो हि अनादिरिति मतम् । तच्च मतं घटस्य पूर्वानन्तरपर्यायमात्ररूपप्रागभावस्यांगीकारे कृते सति विरुद्धयते । (दि० प्र०) 2 पूर्वक्षणविनाश एवोत्तरक्षणस्योत्पत्तिरिति सुगतमतम् । 3 पूर्वोत्तरपर्यायेषु । घटस्याभावः । (दि० प्र०) 4 जनमतम् । 5 प्रागभावास्यानादित्वस्वीकारः। 6 जैनः। 7 ता । (ब्या० प्र०) 8 सौगतः । प्रश्ने । (दि० प्र०) 9 चार्वाकः । 10 मृद्द्रव्यस्याभावस्याभावस्वभावता । (दि० प्र०) 11 द्रव्यस्यानाद्यनन्तत्वात् । 12 यतः प्रागभावस्य नित्यत्वमायातम् । 13 स्यादादी। (दि० प्र०) 14 घटात् । 15 तृतीयविकल्पः । (ब्या० प्र०)। 16 जनस्य। 17 सौगतः (दि० प्र०)। 18 तत्तस्मात् विवक्षितपर्यायेणाव्यवहितपूर्वपूर्वो यो (व्यवहितः) द्रव्यपर्यायस्तस्य निवृत्तौ ।
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