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अष्टसहस्री
[ कारिका १३ [ स्वलक्षणस्य किं लक्षणं ? ] अथ' न द्रव्यं नापि तत्परिणामः सामान्यं विशेषो वा स्वलक्षणम् । किं तहि ? 'ततोन्यदेव किञ्चित् सर्वथा निर्देष्टुमशक्यं प्रत्यक्षबुद्धौ प्रतिभासमानं तदनुमन्यते । एवमपि' जात्यन्तरं सामान्यविशेषात्मकं वस्तु स्वलक्षणमित्यायातं, तस्यैव परस्परनिरपेक्षसामान्यविशेषतद्वद्रव्येभ्योन्यस्य' प्रत्यक्षसंविदि प्रतिभासनात्, निरन्वयक्षणक्षयिनिरंशपरमाणुलक्षणस्य "सुष्ठुप्रत्यक्षेणालक्षणात्" । तत्र च व्यवसायोक्षजन्मा' स्वाभिधानविशेषनिरपेक्षः किन्न स्यात् ? यतोयं स्वलक्षणमशब्द14 न व्यवस्येत् । ततः सामान्यवत्स्वलक्षणमध्यवस्य
इस प्रकार से आप बौद्ध सामान्य का व्यवसाय करते हुये भी कथंचित् उससे अभिन्न स्वलक्षण का व्यवसाय न करें, इस प्रकार आप कैसे उपपत्तिमान् विद्वान् कहे जा सकते हैं ? अर्थात् आप समझदार नहीं हैं।
[ स्वलक्षण क्या है ? ] बौद्ध-स्वलक्षण न तो द्रव्य है, न उसका परिणाम है एवं न वह सामान्य है, न विशेष है। जैन-तब वह स्वलक्षण क्या है ?
बौद्ध-उन सभी से भिन्न ही कोई चीज है कि जिसका शब्द के द्वारा निर्देश करना अशक्य है एवं वह प्रत्यक्ष-निर्विकल्पबुद्धि में प्रतिभासित होता है उसी को हम स्वलक्षण कहते हैं।
जैन-ऐसा कहने पर भी तो जात्यन्तररूप सामान्य-विशेषात्मक वस्तु ही स्वलक्षण है, ऐसा सिद्ध हो जाता है और वही परस्परनिरपेक्ष सामान्य और विशेष एवं उसी प्रकार से परस्परनिरपेक्ष गुण और द्रव्य से भिन्नरूप है, तथा वही प्रत्यक्षज्ञान में प्रतिभासित होता है। क्योंकि निरन्वयक्षणक्षयी निरश परमाणु लक्षण तो सुष्ठु प्रत्यक्ष के द्वारा लक्षित नहीं होता है, अर्थात् जाना नहीं जाता है। तथा उसी-सामान्य विशेषात्मक जात्यन्तररूप स्वलक्षण में अक्ष से उत्पन्न होने वाला एवं अपने नाम विशेष से निरपेक्ष व्यवसाय क्यों नहीं होगा? जिससे कि स्वलक्षण अशब्द का-शब्द रहित का व्यवसाय न करे । अर्थात् उल्लेख के बिना भी "घटमहमात्मना वेनि" ऐसा प्रत्यय देखा जाता है।
1 सौगतः । (दि० प्र०) 2 वस्तु । (ब्या० प्र०) 3 तत्परिणाम इत्येतत्सामान्यं विशेषो वा इत्यनयोविशेषणम् । पर्यायः । (दि० प्र०) 4 द्रव्यात्परिणामरूपात्सामान्याद्विशेषरूपाद्वा स्वलक्षणात् । (दि० प्र०) 5 तेभ्यः । (दि० प्र०) 6 स्वलक्षणम् । (ब्या० प्र०) 7 स्या० एवं भवदुक्तप्रकारेणापि सामान्य विशेषात्मकं पानकवत् जात्यन्तरं संकलनात्मक वस्तुयत् तत्स्याद्वाद्यभ्युपगतं स्वलक्षणं स्यात् इत्यायातम् । (दि० प्र०) 8 एवं प्रत्यक्षबुद्धौ प्रतिभासमाने जात्यन्तरे सर्वथा सामान्यं सर्वथाविशेषेभ्यः भिन्नरूपं कथञ्चित्सामान्यविशेषात्मकं लक्षणमायातम् । (दि० प्र०) 9 वेदान्ताभ्युपगतः । सौगताभ्युपगतः । तद्युक्त । योगपद्यभ्युपगतः । (दि० प्र०) 10 सुष्टुर्न लक्ष्यत इति स्वलक्षणम् । ईदगविधस्य लक्षणस्य प्रत्यक्षेण सुष्ठु अतिशयेनाप्रतिभासनात् । (दि० प्र०) 11 न लक्ष्यते । (दि० प्र०) 12 विकल्पः । (दि० प्र०) 13 सौगतः । (दि० प्र०) 14 शब्दरहितम् । (दि० प्र०)
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