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अनेकांत की सिद्धि ] प्रथम परिच्छेद
[ २८६ [ चरमत्रयभंगा बस्तुनो धर्मा न भविष्यंतीति विचार: ] प्रथमचतुर्थयोद्वितीयचतुर्थयोस्तृतीयचतुर्थयोश्च सहितयोः कथं धर्मान्तरत्वमेवं स्यादिति चेच्चतुर्थे वक्तव्यत्वधर्मे सत्त्वासत्त्वयोरपरामर्शात् । न हि सहार्पितयोस्तयोरवक्तव्यशब्देनाभिधानम् । किं तर्हि ? तथापितयोस्तयोः सर्वथा वक्तुमशक्तेरवक्तव्यत्वस्य धर्मान्तरस्य तेन प्रतिपादन मिष्यते । न च तेन सहितस्य सत्त्वस्यासत्त्वस्योभयस्य वाऽप्रतीतिर्धर्मान्तरत्वासिद्धिर्वा,
[ कया कयापेक्षया सप्तभंगाः संभवंति, तस्य स्पष्टीकरणं ] प्रथमे भङ्ग सत्त्वस्य प्रधानभावेन प्रतीतेः, द्वितीये पुनरसत्त्वस्य, तृतीये क्रमार्पितयोः
इसी उपर्युक्त कथन से क्रम से अर्पित द्वितीय और तृतीय धर्म में धर्मांतरपना प्रतीति सिद्ध नहीं है यह बात भी कह दी गई है।
[ अन्तिम तीन भंग वस्तु के धर्म नहीं हैं ? इस पर विचार ] शंका-प्रथम और चतुर्थ भंग सहित होने पर, तथा द्वितीय और चतुर्थ भंग सहित करने पर, एवं तृतीय और चतुर्थ को साथ मिलाने पर, यह पांचवे, छठे और सातवें भंग बनते हैं और यह पूर्व के ३ भंगों में ही शामिल हो जाते हैं, अतः ये तीन भंग वस्तु के भिन्न धर्म कैसे कहे जा सकते हैं ?
समाधान नहीं, चौथे अवक्तव्य धर्म में सत्त्व और असत्त्व का अपरामर्श होने से वे भंग बन जाते हैं यथा अवक्तव्य धर्म में सत्त्व का अपरामर्श होने पर पांचवाँ भंग होता है एवं अवक्तव्य में नास्तित्व का अपरामर्श होने से छठा भंग बनता है तथा उसी अवक्तव्य में अस्तित्व और नास्तित्व इन दोनों धर्मों का अपरामर्श होने से सातवां भंग बन जाता है क्योंकि एक साथ अवक्तव्य अं दोनों धर्मों को अवक्तव्य शब्द से कह नहीं सकते हैं ।
शंका - तब कैसे कहते हैं ?
समाधान-एक साथ अपित उन दोनों को सर्वथा कहना अशक्य है, इसलिये उस अवक्तव्य से सहित सत्त्व, असत्त्व अथवा उभय धर्म की प्रतीति न हो, ऐसी बात भी नहीं है अथवा इन तीनों को धर्मान्तरत्व की सिद्धि न हो, ऐसी बात भी नहीं है । अतः ये तीनों भंग धर्मान्तररूप सिद्ध हैं।
[ किस किस अपेक्षा से सातों भंग होते हैं उसका स्पष्टीकरण ] प्रथम भंग में सत्त्व धर्म की प्रधानभाव से प्रतीति होती है। द्वितीय भंग में असत्त्व धर्म की प्रधानभाव से प्रतीति होती है । तृतीय भंग में क्रम से अर्पित सत्त्व, असत्त्व की प्रतीति हो रही है।
1 चतुर्थभंगे सहार्पितयोः सदसत्त्वयोरभिधानात्तेन सह प्रथमादिभंगसंयोगे सति पुनरुक्तत्वाद्विशेषात् । (दि० प्र०) 2 अनिश्चयात् । (दि० प्र०) 3 सह । (दि० प्र०)
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