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प्रथम परिच्छेद
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अस्तिनास्ति भंग ] विषाणवत्सर्वथा' समानकालतोपादानोपादेययोर्यतस्तद्भावो विरुध्द्येत द्रव्यसामान्यापेक्षया तयोरेकत्वमिति मननात् । विशेषापेक्षया तु नास्त्येव तादृशामेकत्वम् । न हि पौरस्त्यः ' पाश्चात्य : 1 स्वभावः पाश्चात्यो वा पौरस्त्यः । नन्वेवमेकत्वं' मा भूत् पूर्वापरपरिणामानां, क्रमस्यैवावस्थानादक्रमस्य तद्विरुद्धत्वादिति न मन्तव्यं यस्मान्निरपेक्षस्तत्र' क्रमोपि 'प्रतिभासविशेषवशात्प्रकल्प्येत तदेकत्वादक्रमः किन्न स्यात् ? प्रतिभासंकत्वेपि तदक्रमानुपगमे
सकेगा । अतः उस प्रकार के उपादान और उपादेयभूत में स्वरूपैकत्व ( द्रव्य की अपेक्षा से ) है हो है ।"
,
दायें-बायें सींग समान उपादान और उपादेय में सर्वथा समानकालत्व नहीं है । जिससे कि यह उससे हुआ है यह कथन विरुद्ध हो सके । क्योंकि द्रव्य सामान्य की अपेक्षा से ही उन उपादान और उपादेय में हमने एकपना स्वीकार किया है । अर्थात् जैसे घट और कपालादि में अपेक्षा से ही एकपना है न कि पर्यायों की अपेक्षा से ।
मृद्रव्य की
"विशेष की अपेक्षा अर्थात् पर्याय की अपेक्षा से तो उस प्रकार के उपादान और उपादेय स्वरूप एकत्व नहीं है ।
में
क्योंकि पौरस्त्य ( पहले होने वाला) स्वभाव पाश्चात्य नहीं हो सकता है अथवा पाश्चात्य ( अनंतर होने वाला ) स्वभाव पौरस्त्य भी नहीं हो सकता है ।"
प्रश्न - तब तो इस प्रकार से पूर्वापर परिणामों में एकपना कथमपि नहीं हो सकेगा। क्योंकि क्रम में ही वे पूर्वापर परिणाम सदा अवस्थित हैं । अक्रम में तो उन पूर्वापर परिणामों का विरोध ही है ।
उत्तर - ऐसा भी नहीं मानना चाहिये ।
"यदि वहाँ पर प्रतिभास विशेष के बल से निरपेक्ष क्रम भी प्रकल्पित किया जावेगा तब तो द्रव्य प्रतिभास की अपेक्षा से एकत्व के होने से अक्रम भो क्यों नहीं होवेगा ?"
और प्रतिभास एकत्व के होने पर भी उस अक्रम को स्वीकार न करने पर तो प्रतिभास विशेष के वश से (पर्याय की अपेक्षा से ) क्रम भी स्वीकार करने योग्य कैसे होगा ?
क्योंकि सभी वस्तुयें प्रतिभास के अनुरूप ही व्यवस्थित हैं ।
4 प्रत्यक्षः ।
1 द्रव्यरूपेणेव पर्यायरूपेणापि । ( व्या० प्र० ) 2 निश्चयात् । ( व्या० प्र० ) 3 शब्द | ( दि० प्र० ) ( ब्या० प्र० ) 5 सौगतो वदति पूर्वोत्तरपर्यायाणां क्रमोस्ति अक्रमोनास्तीति चेत् । पर्यायेण क्रमः द्रव्येणाऽक्रमः । ( दि० प्र०) 6 जैनोऽक्रमनिरपेक्षोपि क्रम इति शेषः । ( दि० प्र०) 7 पूर्वोत्तरक्षणेषु । ( दि० प्र०) 8 प्रतिभासातिशयवशात् इति पा० । ( दि० प्र०) भेदः । (दि० प्र० ) 9 घटेत् । ( दि० प्र०)
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