Book Title: Ashtsahastri Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 434
________________ अस्तित्व का स्वरूप । प्रथम परिच्छेद [ ३६५ तत्स्वभावभेदाभावे च संकेतविशेषानुपपत्तेरभिधानप्रत्ययविशेषोपि' मा भूत्तदन्यतरवत् । नन्वनिन्द्रस्वभावेपि पदार्थे व्यवहर्तृ संकेत विशेषादिन्द्राभिधानप्रत्ययविशेषदर्शनान्न वस्तुस्वभावभेदनिबन्धनः संकेतविशेष: सिद्धो यतो वस्तुस्वभावभेदाभावे संकेतविशेषानुपपत्तिः ततोभिधानप्रत्ययविशेषश्च' न स्यात्, खमस्ति, तत्पुष्पं नास्तीति', तस्यानादिवासनोद्भूतविकल्पपरिनिष्ठितत्वात् । [ सर्वे शब्दाः सर्वानर्थान् प्रतिपादयितुं शक्नुवन्तीति जैनाचार्या ब्रुवंति ] इति कश्चित्सोप्यननुभूतवस्तुस्वभावः, शब्दस्य सर्वार्थप्रतिपादनशक्तिवैचित्र्यसिद्धः, जैन-ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि संकेत-भेद भी वस्तु स्वभाव के भेद के निमित्त से ही होते हैं । अर्थात् एक ही वस्तु में विधि और निषेधरूप दो स्वभाव पाये जाते हैं। यदि विधि और निषेध में वस्तुतः स्वभाव भेद न माना जावे तब तो संकेत का भेद भी वहाँ पर हो नहीं सकता है । इसलिये विधिरूप आकाशादि और निषेधरूप खपुष्पादि में स्वभाव भेद माने बिना काम नहीं चल सकता है अतः स्वभावभेद उनमें मानना ही चाहिये। अन्यथा विधि, निषेध' इस प्रकार का शब्द विशेष और इसी प्रकार का प्रत्यय-विकल्प विशेष भी वहाँ हो नहीं सकता जैसे कि ख और पुष्प इन दोनों में से किसी एक में विधि-निषेध नहीं बनता है। सौगत - इन्द्र स्वभाव रहित (स्थापना रूप इन्द्र) पदार्थ में व्यवहार करने वाले के संकेत विशेष से 'इन्द्र' यह शब्द और उसका ज्ञान विशेष भी देखा जाता है। इसलिये संकेत विशेष वस्तु स्वभाव भेद निमित्तक सिद्ध नहीं है, जिससे कि वस्तु स्वभाव में भेद का अभाव होने पर भी संकेत विशेष न बन सके और संकेत विशेष के न बनने से शब्द विशेष और ज्ञान विशेष न हो सकें अर्थात होगा ही होगा यथा “आकाश है उसका पुष्प नहीं है" इत्यादि रूप से ज्ञान देखा जाता है क्योंकि शब्द और प्रत्यय विशेष अनादि वासना से उत्पन्न हुये विकल्प से परिनिष्ठित हैं—सहित हैं । [सभी शब्द सम्पूर्ण अर्थों को प्रतिपादन कर सकते हैं ऐसा जैनाचार्य कहते हैं ] जैन-ऐसा कहते हुए आपको वास्तव में वस्तु के स्वभाव का अनुभव ही नहीं हुआ है। देखिये ! सभी शब्दों में संपूर्ण अर्थ को प्रतिपादन करने की विचित्र शक्ति पाई जाती है। सभी पदार्थों में भी सभी शब्दों से वाच्य होनेरूप नाना शक्ति विद्यमान हैं । अतएव प्रधान और गौण भावरूप से शब्द व्यवहार प्रसिद्ध है। 1 का। (दि० प्र०) 2 स्याद्वादी वदति हे मीमांसक ! वस्तुस्वरूपविशेषाभावे सम्यग्नामकरणलक्षणः संकेतो नोत्पद्यते संकेताभावे सति तदन्यतरवदभिधानं न घटते विकल्पविशेषश्च न घटते तथाभिधानविकल्पद्वयं न घटते । (दि० प्र०) 3 वस्तुनो भावेभिधानप्रत्ययविशेषश्च यतः कुतः स्यान्न कुतोपि । (दि० प्र०) 4 शब्दविकल्पविशेषस्य । (दि० प्र०) 5 रूढित्वात् । अवस्थितत्व । (दि० प्र०) 6 सोपि मीमांसकोऽज्ञातवस्तुस्वरूपः । (दि० प्र०) 7 गुणप्रधानभावेन । (दि० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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