Book Title: Ashtsahastri Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 458
________________ स्याद्वाद अर्थक्रियाकारी है ] प्रथम परिच्छेद [ ३८६ "न च कश्चिद्विरोधोस्तीति मुनीन्द्र तव शासने,” अन्यशासनेष्वेव विरोधसाधनादिति व्याख्यातं' प्रतिपत्तव्यम् । नहीं होती है। इसी कथन से "हे मुनीन्द्र ! आपके शासन में कुछ भी विरोध नहीं है, किन्तु अन्य मतावलम्बियों के शासन-मत में ही विरोध सिद्ध हो जाता है" ऐसा कहा गया समझना चाहिये । OBA FFOR 02 GANA अस्तित्व, नास्तित्व धर्म अविनाभावी का सारांश एक धर्मी जीवादि में अस्तित्व जो वस्तु का धर्म है वह नास्तित्व के साथ अविनाभावी है, क्योंकि विशेषण है जैसे कि हेतु में भेद विवक्षा से साधर्म्य, वैधर्म्य के साथ अविनाभावी है। केवलान्वयी हेतु में भी साधर्म्य और वैधर्म्य दोनों ही संभव हैं। तथाहि-"जीवः परिणामी प्रमेयत्वात् यः प्रमेयः स परिणामी एव यथा घट: यो न परिणामी स प्रमेयोऽपि नास्ति यथा आकाशपुष्पं"। इसमें भी व्यतिरेक है ही है क्योंकि प्रमेयत्व वस्तु का धर्म है। खपुष्प अप्रमेय है यह बात विरुद्ध भी नहीं है अतः केवल विशेषण हेतु धूमादि में ही नहीं किन्तु प्रमेयत्वादि हेतु में भी "खपुष्पादि अप्रमेय हैं" इस प्रकार से व्यतिरेक सिद्ध ही है। यदि बौद्ध यह कहे कि सभी वस्तु को परिणामी आदि सिद्ध करने में सपक्ष में अन्वय ही संभव नहीं है। जो भी दृष्टांत की कोटि में आवेगा वह पक्ष में अंतर्भूत हो जावेगा यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि उन हेतुओं में भी तथोपपत्तिरूप अंताप्तिलक्षण अन्वय विद्यमान है । अर्थात् हेतु के दो लक्षण हैं, अन्यथानुपपत्ति एवं तथोपपत्ति, तथोपपत्ति का नाम साधर्म्य है एवं अन्यथानुपपत्ति का ही वैधर्म्य यह नाम है, ये दोनों लक्षण हेतु में रहते ही हैं। अतः सभी हेतुओं में साधर्म्य वैधर्म्य के साथ अविनाभावी है, यह उदाहरण प्रसिद्ध है, इसलिए किसी भी धर्मी का विशेषण प्रतिषेध्य के साथ अविनाभावी है। ___ यदि कोई कहे कि अस्तित्व नास्तित्व के साथ अविनाभावी है सो ठीक है, किन्तु नास्तित्व अस्तित्व के साथ अविनाभावी कैसे होगा ? क्योंकि आकाश कमल आदि में किसी भी प्रकार से अस्तित्व संभव नहीं है। 1 भट्टाकलंकदेवैः । (ब्या० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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