Book Title: Ashtsahastri Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 416
________________ शेषभंग की सिद्धि ] प्रथम परिच्छेद [ ३४७ नुपलम्भात्संकेतोपि न सिध्येत् । न चासंकेतितमपि सामान्यं वाच्यं नाम, अतिप्रसङ्गात् । सतापि तादृशान्यव्यावृत्त्यात्मना भवितव्यम्, अन्यथा विशेषवत्स्वभावहानिप्रसङ्गात विशेषाणां' वा तद्वत्ततो व्यावृत्तेः । परापरसामान्ययोः परस्परं स्वाश्रयाच्च कथंचिदव्यावृत्तौ' स्वरूपसंकरात्प्रतिनियतस्वभावहानेरवश्यंभावाद्विशेषवत् तद्वतोर्थस्याप्यभाव इति 'सर्वा सर्वगत, अमूर्त, एकरूप है एवं विशेषों से सर्वथा भिन्न है अथवा सर्वथा अभिन्न है इत्यादि रूप से आप नहीं कह सकते हैं क्योंकि वह सामान्य अर्थक्रिया में साक्षात् अथवा परम्परा से (शब्द के द्वारा जाति ग्रहण की जाती है, और जाति से व्यक्ति का ग्रहण होता है, पश्चात् अर्थक्रिया में प्रवृत्ति होती है) अनुपयोगी ही है। उस प्रकार अमूर्त, एकरूप सामान्य की उपलब्धि न होने से "यह सामान्य है" ऐसा नामरूप संकेत भी सिद्ध नहीं हो सकेगा। और असंकेतित अर्थात् शब्द के द्वारा अगृहीत भी सामान्य वाच्य नहीं हो सकेगा, अन्यथा अति प्रसंग हो जावेगा। ___ एवं सत्-विद्यमान भी वैसा सामान्य अन्य व्यावृत्तिरूप (सामान्यांतर व्यावृत्तिरूप) होना चाहिये अन्यथा "जैसे विशेष में विशेषान्तर की व्यावृत्ति का अभाव होने पर उसके स्वभाव की हानि का प्रसंग प्राप्त होता है" तथैव विशेष के समान उस सामान्य के भी स्वभाव की हानि का प्रसंग हो जावेगा । अथवा जैसे सामान्य से सामान्यांतर की व्यावृति के न होने पर उसके स्वभाव हानि का प्रसंग आता है, तथैव उस विशेष से विशेषांतर को व्यावृत्ति के न होने पर उसके स्वभाव की हानि का प्रसंग हो जावेगा । अतएव जैसे उस विशेष को अन्य विशेषों से व्यावृत्ति है, वैसे ही सामान्य की भी सामान्यांतर से व्यावृत्ति स्वीकार करना चाहिये। पर और अपर सामान्य परस्पर में स्वाश्रयरूप हैं, अतः परसामान्य की अपरसामान्य से कथंचित् व्यावृत्ति नहीं है । ऐसा मानने पर तो स्वरूप संकर नाम का दोष आ जावेगा। तथा प्रतिनियत स्वभाव की हानि भी अवश्य हो जावेगी विशेष के समान । अर्थात् जैसे विशेष की विशेष से अव्यावृत्ति मानने पर उस विशेष के प्रतिनियत स्वभाव की हानि का प्रसंग होता है एवं स्वभाव की हानि होने से स्वभाववान् पदार्थ का भी अभाव हो जावेगा पुनः सर्वाभाव--सभी वस्तु के अभाव का ही प्रसंग प्राप्त हो जावेगा। 1 संकेतसहितेनापि । (दि० प्र०) 2 भिन्नात्मा । (दि० प्र०) 3 आशंक्य =अन्यथावृत्तिभावहानिर्यथा विशेषाणाम् । (दि० प्र०) 4 सामान्यस्य विशेषस्य च यथाक्रम सामान्यतराद्विशेषान्तराच्च व्यावत्यभावे स्वभावहानि प्रतिपाद्येदानी विशेषाणां सामान्यात्सामान्यस्य च विशेषाद्वयावृत्यभावे स्वभावहानिः प्रतिपादयन्ति विशेषाणाम् वेति । (दि० प्र०) 5 परस्परं सतापि तादृशान्यव्यावृत्यात्मना भवितव्यमिति भाष्यांशविवरणमिदम् । परसामान्यं महासत्ता अपरसामान्य जीवादिद्रव्यविवरणं सयोः । (दि० प्र०) 6 परत्वापरत्वप्रकारेण सामान्यविशेषप्रकारेण वा । (ब्या० प्र०) 7 अभिन्ने । (दि० प्र०) 8 सामान्यविशेषवतः । (ब्या० प्र०) 9 हेतोः । (दि० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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