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अस्तित्व नास्तित्व का अविनाभाव प्रथम परिच्छेद
[ ३५६ नन्वस्तित्वमेव वस्तुनः स्वरूपं, न पुनर्नास्तित्वं, तस्य पररूपाश्रयत्वादन्यथातिप्रसङ्गादिति वदन्तं वादिनं प्रत्याहुराचार्याः ।
अस्तित्वं' प्रतिषेध्येनाविनाभाव्येकमणि ।
विशेषणत्वात्साधर्म्य यथा भेदविवक्षया ॥१७॥ एको धर्मी जीवादिः । तत्रास्तित्वं नास्तित्वेन प्रतिषेध्येनाविनाभावि, न पुनभिन्नाधिकरणं, विशेषणत्वात्। यथा हेतौ साधर्म्य वैधयेण' भेदविवक्षया सर्वेषां हेतुवादिनां' क्वचिदनुमानप्रयोगे प्रसिद्धम् ।
उत्थानिका- अब अद्वैतवादी कहते हैं कि वस्तु का स्वरूप अस्तित्व ही है न कि नास्तित्व, क्योंकि वह नास्तित्व पररूपाश्रित है। अन्यथा यदि नास्तित्व पररूप का आश्रय रखता है फिर भी आप उसे वस्तुरूप मानेंगे तब तो अतिप्रसंग दोष आवेगा । अर्थात् पररूपाश्रित नास्तित्व भी विवक्षित वस्तु का स्वरूप हो जावेगा, उनके प्रति आचार्य कहते हैं।
कारिकार्थ-एक जीवादि धर्मी में अस्तित्व जो वस्तु का धर्म है, वह प्रतिषेध्यनास्तित्व के साथ अविनाभावी है, क्योंकि विशेषण है, जैसे कि हेतु में भेद विवक्षा से साधर्म्य, वैधर्म्य के साथ अविनाभावी है ॥१७॥
एक धर्मी जीवादि है । उसमें अस्तित्व, नास्तित्वरूप प्रतिषेध्य के साथ अविनाभावी है, किन्तु वह भिन्न अधिकरणरूप नहीं है क्योंकि वह भी विशेषण है जैसे कि सभी हेतुवादियों के यहाँ किसी भी अनुमान का प्रयोग करने पर हेतु में भेद विवक्षा से साधर्म्य, वैधर्म्य के साथ अविनाभावी है, यह बात प्रसिद्ध है।
1 जीबादिर्धामणः । एक धर्मिण्यस्तित्वं पक्षः नास्तित्वेनाभावि भवतीति साध्यो धर्मः विशेषणत्वात् यद्ययद्विशेषणं तत्तदेकमिणि प्रतिषेध्येनाविनाभावि । यथा हेतौ भेदविवक्षया साधर्म्य वैधयेणाविनाभावि। विशेषणचेदं तस्मान्नास्तित्वे नाविनाभावि । (दि० प्र०) 2 व्यवच्छेदकत्वात् । अस्तित्वनास्तिस्वयोर्वस्तुविशेषणत्वात् । (दि० प्र०) 3 एकमणि हेतोरन्वय रूपम् । व्यतिरेकदृष्टान्त विवक्षया। (दि० प्र०) 4 जीवादी धर्मिणि। (दि० प्र०) 5 यतोऽस्तित्वनास्तित्वं द्वेऽपि विशेषणे धमौं वस्तुनस्तः । (दि० प्र०) 6 एकमिणि । (ब्या० प्र०) 7 व्यतिरेकेण । (व्या० प्र०) 8 सर्वथा भेदाभावे एकत्व प्रसंगस्तत्परिहारार्थमाह । (ज्या० प्र०) 9 प्रमाणिकानाम् । (दि० प्र०)
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