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अष्टसहस्री
[ कारिका १४
1"साध्याभिधानात्पक्षोक्तिः पारम्पर्येण नाप्यलम् ।
शक्तस्य सूचकं हेतुवचोऽशक्तमपि स्वयम्" इति वचनात् । स्वयं तत्कृतां वस्तुसिद्धिमुपजीवति, न तद्वाच्यतां चेति स्वदृष्टिरागमात्रमनवस्थानुषङ्गात्, वस्तुनोनुमानवाक्यवाच्यतानुपजीवने तत्कृतायाः सिद्धरुपजीवनासंभवात्, अनभिमतप्रतिवादिवचनादपि' तत्सिद्धिप्रसङ्गात्, "स्वाभिधेयरहितादपि स्ववचनात्तत्त्वसिद्धिरुपजीव्यते, न पुनः परवचनादिति कथमप्यवस्थानासंभवात् । मद्वचनं वस्तुदर्शनवंशप्रभवं,न पुनः परवचनमिति स्वदर्शनानुरागमात्र, न तु परीक्षाप्रधानं, सर्वस्य वचसो विवक्षाविषयत्वाविशेषात् ।
श्लोकार्थ-पक्ष का कथन साध्य के वचनों से साध्य को समझाने के लिये परम्परा से भी समर्थ नहीं हो सकेगा, क्योंकि हेतुवचन स्वयं असमर्थ होते हुये भी पहले हेतु का समर्थन करता है और वह हेतु शक्त-साध्य का सूचक होता है।
स्वयं ही हेतु वचनों के द्वारा की गई वस्तु की सिद्धि को स्वीकार करके अपने पक्ष का आग्रह करते हुए आप अपने पक्ष को जीवित रखते हैं और हेतुवचन की वाच्यता को स्वीकार नहीं करते हैं यह तो अपने मत का एक अनुरागमात्र ही है और इस तरह अनवस्था हो जाने से व्यवस्था भी नहीं बन सकती है। अर्थात् अपने वचनों से अपने तत्त्व को सिद्ध करके आप अपना पक्ष लेते हैं और पर के वचनों से पर के तत्त्व की व्यवस्था को नहीं मानते हैं, इससे कोई भी व्यवस्था नहीं बन सकती है, क्योंकि यह तो केवल पक्षपात ही है।
और यदि आप वस्तु को अनुमान वाक्य से भी वाच्यरूप स्वीकार नहीं करेंगे तब तो उस अनुमान के द्वारा की गई स्वतत्त्व की सिद्धि को भी स्वीकार नहीं कर सकेंगे और स्वीकार करेंगे तो आपको अन्यथा-अपने को अनभिमत प्रतिवादी जैनादि) के वचनों से उनके द्वैतवाद आदि तत्त्वों की सिद्धि को भी स्वीकार करना पड़ेगा क्योंकि आप स्वाभिधेयरहित भी स्ववचन से स्वतत्त्व की सिद्धि तो स्वीकार कर लेवें और पर के वचन से पर के तत्त्व की सिद्धि न मानें, यह व्यवस्था कथमपि सम्भव नहीं है।
1 हेतुवच: साध्यसाधनसमर्थं हेतुं सूचयति । स च हेतु: साध्यं साधयति । एवं हेतुवच: पारम्पर्येण साध्यसिद्धि प्रत्यलं समर्थं भवति । पक्षोक्तिस्तु साध्यं प्रतिपादयति तथापि पारम्पर्येणापि साध्यसिद्धि प्रतिनालं तदभिहितसाध्येन साध्यसिद्धयभावादिति श्लोकाभिप्रायः । (दि० प्र०) 2 पर्वतोयमग्निमानिति । (दि० प्र०) 3 हेतोः। (दि० प्र०) 4 सौगतः । वचनम् । क्षणिकत्व । (दि० प्र०) 5क्षणिकत्वस्य । सौगतः तत्कृतां हेतुवच: कृताम् । आत्ममत । दर्शने । (दि० प्र०) 6 क्षणिकत्व । (दि० प्र०) 7 अनिष्टशब्दाद्वैतवादिवाक्यादपि । (दि० प्र०) 8 यत्सत्तत्सर्वमक्षणिकमिति । (दि० प्र०) 9 तेनाप्यवाच्यता विशेषात् । (दि० प्र०) 10 क्षणिकत्व । (ब्या० प्र०) 11 एतस्य । (ब्या० प्र०) 12 अवाच्यवादी सौगतो वदति हे शब्दाद्वैतवादिन् । (दि० प्र०) 13 शब्दाद्वैती। (दि० प्र०) . 14 सौगतस्य । (दि० प्र०)
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