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अष्टसहस्री
[ कारिका १०
तथा सति घटस्यानादित्वं पूर्वपर्यायनिवृत्तिसन्ततेरप्यनादित्वात् । ननु च न प्रागनन्तरपर्यायः प्रागभावो घटस्य नापि मृदादिद्रव्यमात्रं न च ' तत्पूर्वसकलपर्यायसन्ततिः ' । किं तर्हि ? 'द्रव्यपर्यायात्मा' प्रागभावः । स च स्यादनादिः " स्यात्सादिरिति स्याद्वादिदर्शनं "निराकुलमेवेति चेन्न
[ नैयायिको जैनाभिमतप्रागभावं निरस्य स्वस्य निःस्वभावरूपं प्रागभावं समर्थयति ] 'एवमप्युभयपक्षो ंपक्षिप्तदोषानुषङ्गात् । द्रव्यरूपतया तावदनादित्वे 14 प्रागभावस्यानन्तत्वप्रसक्तेः” सर्वदा कार्यानुत्पत्तिः स्यात् । पर्यायरूपतया च "सादित्वे 17 प्रागभावात्पूर्वमप्यु 20
मान करके ही उस घट की उत्पत्ति मानी है । इस पर जैनाचार्यों ने कहा है कि हम स्याद्वादियों के यहाँ ये दूषण नहीं आते हैं क्योंकि न तो हमने पूर्व-पूर्व की सभी पर्यायों इतरेतराभाव माना है और न बोद्ध के समान पूर्वक्षण का निर्मूल नाश होकर उत्तरक्षण का उत्पाद ही माना है । हमने तो कथञ्चित् ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा से पूर्व के अन्तिम क्षणवर्ती कारणरूप पर्याय का विनाश माना है उसमें द्रव्यरूप मिट्टी का नाश नहीं हुआ है और वह मिट्टी ही अपने मूल मृत्स्वभाव को न छोड़कर घटरूप उत्तरपर्याय से उत्पन्न हो जाती है अतएव पूर्वपर्याय का नाश एवं उत्तरपर्याय का उत्पाद तो ठीक है किंतु द्रव्यरूप मिट्टी का नाश और उत्पाद नहीं हुआ है बौद्ध तो जड़मूल से मिट्टी का ही नाश मानकर उत्तरक्षण में घटकार्य मानते हैं जो कि सर्वथा असम्भव है । एवं पूर्व - पूर्व की सभी पर्यायों में भी कथञ्चित् प्रागभाव है इतरेतराभाव नहीं है फिर भी उन पर्यायों—स्थास, कोश, कुशूल आदि के साथ अन्तिम क्षण के विनाश का होना भी आवश्यक है जब घट बनेगा । अतः हमारे यहाँ प्रागभाव प्रमाण की अपेक्षा से द्रव्य पर्यायात्मक एवं द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से अनादि है तथा सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा से अन्तिम क्षणवर्ती पर्यायरूप सादि है कोई बाधा नहीं है ।
[ नैयायिक के द्वारा जैनाभिमत प्रागभाव का खण्डन एवं तुच्छाभावरूप प्रागभाव का समर्थन ] नैयायिक - आपका यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि इस प्रकार की मान्यता से तो उभय पक्ष में दिये गये दूषणों का प्रसङ्ग प्राप्त होता है । यदि द्रव्यरूप से अनादि मानोगे तब तो प्रागभाव को अनन्तपने का प्रसंग प्राप्त होता है यानी प्रागभाव का कभी भी नाश न होने से हमेशा ही कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकेगी और यदि पर्यायरूप से सादि मानोगे तब तो प्रागभाव के पश्चात् जिस प्रकार घट की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार प्रागभाव के पूर्व में भी घट की उत्पत्ति हो जावेगी उसे
1 अभाव: । ( दि० प्र० ) 2 स्याद्वादी । ( दि० प्र०) 3 घटस्य प्रागभावः । 4 तस्मात् घटात् । ( दि० प्र०) 5 घटस्य प्रागभावः । 6 द्रव्यपर्यायौ आत्मा स्वरूपं यस्यार्थस्य सः । कथञ्चिद्रव्यात्मा कथञ्चित्पर्यायात्मा | 7 अर्थ: । ( दि० प्र० ) 8 प्रागभावः । ( दि० प्र० ) 9 द्रव्यापेक्षया । 10 पर्यायापेक्षया । 11 निर्बाधम् । ( दि० प्र०) 12 यौगः । प्रागभावस्य द्रव्यपर्यायात्मकत्त्वोपि । ( दि० प्र०) 13 द्रव्यपर्यायापेक्षयानादिसादीति पक्षद्वयम् । 14 द्रव्यस्य । ( दि० प्र० ) 15 विनाशरहितत्वप्रसक्तेः । 16 प्रागभावस्य । (ब्या० प्र० ) 17 मृत्पिण्डात् घटस्य । ( दि० प्र० ) 18 प्रागनन्तरपर्यायरूपात् । 19 अनन्तकार्यसन्तती | 20 घटस्य ।
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