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इतरेतराभाव की सिद्धि ]
प्रथम परिच्छेद
[ २०१ व्यवस्थानात्तद्विशेषे एव हेतुव्यापारोपगमात् । यतश्चैवं पर्यायाथिकनयादेशात्प्रतिक्षणमनन्तपर्यायः क्रमेणाविच्छिन्नान्वय'संततिरर्थः प्रतीयते ।
[ सर्वपदार्थाः उत्पादव्ययध्रौव्यात्मकाः संतीति प्रतिपादनं ] तस्मादयमुत्पित्सुरेव विनश्यति जीवादिः, पूर्वदुःखादिपर्यायविनाशाऽजहवृत्तित्वात्तदुत्तरसुखादिपर्यायो'त्पादस्य । नश्वर एव तिष्ठति, कथञ्चिदस्थास्नो शानुपपत्तेरश्वविषाणवत् । सद्रव्यचेतनत्वादिना स्थास्तुरेवोत्पद्यते सर्वथाप्यस्थास्नोः कदाचिदुत्पादायोगातद्वत् । ततः प्रतिक्षणं त्रिलक्षणं सर्वमुत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सदिति वचनात् । का विनाश और पुद्गलरूप का अवस्थान दोनों ही अवस्थाओं में विद्यमान है इसी को परिणाम भी कहते हैं। इस पर्यायाथिकनय की अपेक्षा से भिन्न कारण-सामग्री की अपेक्षा न रखता हुआ प्रत्येक पदार्थ अनन्तधर्मात्मक है और क्रम से अविच्छिन्नरूप से अन्वयसंततिरूप अनुभव में आ रहा है। चाहे चेतन पदार्थ हों चाहे अचेतन पदार्थ हों सभी की यही अवस्था है । व्यंजन पर्यायें तो स्थिर-स्थूल आकार वाली होती हैं जैसे मनुष्य पर्याय सौ वर्ष की है उसका विनाश होकर दो सागर की स्थिति वाली देवपर्याय का उत्पाद हो जाता है और दोनों अवस्थाओं में जीवात्मा अन्वयरूप से रहता है । यह व्यंजन पर्याय है । कहा भी है
"स्थूलो व्यंजनपर्यायो वाग्गम्यो नश्वरः स्थिरः ।
सूक्ष्मः प्रतिक्षणध्वंसी पर्यायश्चार्थसंज्ञकः ॥" अर्थ-जो स्थिर, स्थूल, नश्वर है और वचन से कही जाती है वह व्यंजनपर्याय है। इससे । विपरीत सूक्ष्म और प्रतिक्षणध्वंसी-एकक्षणवर्तीमात्र जो पर्याय है वह अर्थपर्याय कहलाती है।
[ सभी पदार्थ उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक हैं ] अतः यह जीवादि पदार्थ उत्पन्न होने वाले ही नष्ट होते हैं। एवं पूर्व दुःखादिपर्याय का विनाश होते हए भी अजहद्वत्ति-(स्वभाव को छोड़ने वाले न होने से उत्तर सखादिरूप पर्याय से उत्पन्न होते हैं।) एवं पर्याय की अपेक्षा से नश्वर ही ठहरता है। क्योंकि यदि द्रव्य की अपेक्षा से भी अस्थिर हो तब तो उसका नाश हो ही नहीं सकता अश्व के सींग के समान । अतएव सदद्रव्य चेतनत्व आदि के द्वारा स्थास्नु ही उत्पन्न होता है। सर्वथा भी जो अस्थिर है, उसमें उत्पाद का अभाव है, घोड़े के सींग के समान । इसीलिये सभी वस्तु प्रतिक्षण तीन लक्षण वाली है, क्योंकि "उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्" ऐसा सूत्रकार का वचन है।
1 कार्य । (ब्या० प्र०) 2 एतेन बौद्धाभ्युपगतं वस्तुन एकस्वभावत्वं प्रयुक्तं प्रतितव्यम् । (दि० प्र०) 3 इतः परम क्रमेण स्थित्यादिरूपतया वस्तुपरिणमत इति वक्तुकामाः क्रमेणेति पदमुपन्यस्तवन्तः । (ब्या० प्र०) 4 बसः । (ब्या० प्र०) 5 आगमात् । (ब्या० प्र०) 6 द्रव्यम् । (ब्या० प्र०) 7 बसः । (ब्या० प्र०) 8 जीवद्रव्यापेक्षया जीवस्य। (दि० प्र०)
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