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अष्टसहस्री
[ कारिका ११
प्रमाणान्तरस्यापि स्वकारणविषयत्वात् । तस्य कार्यानुमानत्वे तावदभावस्य कारणत्वप्रसक्तिः । न चासौ युक्तिमती । स्वभावानुमानत्वेपि भावात्मकतापत्तिः, अभावस्य स्वभावासंभवात् । असतोनुपलब्धेः पर्युदासवृत्त्या वस्तुनि नियमात् सर्वथाप्यभावाविषयत्वसिद्धिः ।
बौद्धों की यही मान्यता है कि जिस पदार्थ से निर्विकल्पज्ञान उत्पन्न होता है, उसी को विषय करता है और अनुमान ज्ञान भी निर्विकल्प का पृष्ठभावी होने से निर्विकल्प प्रत्यक्ष से जाने हुये विषय को ही ग्रहण करता है । अतः वह अनुमान भी परम्परा से जिस अर्थ से उत्पन्न होता है, उसी को विषय करता है, अन्य को नहीं । एवं अभाव प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञान की उत्पत्ति में न कारण बन सकता है, न वह अभाव उनका विषय ही हो सकता है।
वह अनुमान ही कार्यानुमानरूप है, ऐसा कहने पर तो अभाव भी कारण बन जावेगा, किन्तु इस प्रकार कहना युक्तियुक्त नहीं है। उस अनुमान को स्वभावानुमान मानने पर भी अभाव को भावात्मकत्व का प्रसंग प्राप्त हो जावेगा, किन्तु अभाव को स्वभावरूप कहना असंभव ही है, इसलिये उस अभावरूप लिंग से अनुमान का उदय नहीं हो सकेगा। अर्थात् अनुमान के लिये तीन हेतु माने हैंकार्यहेतु, स्वभावहेतु और अनुपलब्धिहेतु। इसी को लेकर यहाँ कथन है कि यदि अनुमान को कार्यहेतु से उत्पन्न हुआ कार्यानुमान कहेंगे और अनुमान से अभाव को विषय करना मानेंगे तब तो कार्यानुमान होने से इस अनुमान के लिये अभाव कारण बन जावेगा, क्योंकि कार्य तभी बनता है, जब कुछ कारण होता है, कारण के अभाव में कार्य कल्पना ही असंभव है इत्यादि।
एवं असत् की अनुपलब्धिरूप हेतु से पर्युदास वृत्ति से वस्तुभूत-भूतल का ही नियम हो जाता है । अतः सर्वथा भी अभाव अविषय ही है ऐसा सिद्ध हो जाता है। अर्थात् "नास्त्यत्र घटोऽनुपलब्धेः" इससे भी अभाव का ग्रहण नहीं होता है, प्रत्युत् पर्युदासरूप से भूतल का ही ग्रहण होता है। अतएव अनुपलब्धिविषयक भी अभाव भावस्वभाव ही है, ऐसा समझना चाहिये।
भावार्थ-बौद्ध ने प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रमाण माने हैं और उनका कहना है कि ये दोनों ही प्रमाण अभाव को विषय नहीं कर सकते हैं। निर्विकल्प प्रत्यक्ष में तो एकक्षणवर्ती पर्यायरूप विशेष ही झलकता है और निर्विकल्पज्ञान के अनन्तर सविकल्पज्ञान होता है, वह भी निर्विकल्प के विषय. को ही विषय करता है, परंपरा से उत्पन्न हुआ अनुमानज्ञान भी उसी प्रत्यक्ष के विषय को ग्रहण करता है । उनका कहना है कि ज्ञान जिस विषय (पदार्थ) से उत्पन्न होता है, उसी को ग्रहण करता हैजानता है अन्य को नहीं और अभाव से तो कुछ उत्पन्न होना शक्य नहीं है, अन्यथा आकाश कमल से भी माला बनना, सुगंधि आना संभव हो जावेगा।
हेतु के तीन भेदों में से कार्यहेतु से जो अनुमान उत्पन्न होता है, उसमें भी अभाव कारण नहीं बन सकता है । स्वभावहेतु जो अनुमान उत्पन्न होता है, जैसे "अयं वृक्षोऽस्ति शिशपात्वात्" यह वृक्ष है क्योंकि शिशपा है। यह शिशपात्व हेतु स्वभावहेतु है यदि स्वभाव हेतु से उत्पन्न अनुमान को
1 अन्तशोनुपलब्धेरिति पा० । (ब्या० प्र०) अन्तेऽस्तित्वधर्मे भूतले। (ब्या० प्र०) 2 भावानुपलब्धः। घटादेः । अनुपलब्धिलिङ्गस्य । (ब्या० प्र०)
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