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अभाव एकांत का खंडन ]
प्रथम परिच्छेद
[ २३६ नैरात्म्यस्य साध्यत्वायोगादनरात्म्यस्य दृष्यत्वायोगवत् । न हि संवृत्त्या साध्यसाधनव्यवस्था युक्तिमती, परमार्थतोपगमे नैरात्म्यस्य तत्सिद्धरपि' सांवृतत्वप्रसङ्गात्, सांवृतात्साधनाद्वास्तवसिध्द्यसंभवात् । शून्य सिद्धेरपरमार्थत्वे पुनरनिराकृतसद्धावस्य' सर्वस्याशून्यतानुषङ्गात् तत्साधनं विरुद्धमापद्येत ।
कालापन किसी प्रमाण से बाधित नहीं है एवं विरोधी समबल वाले प्रमाण के न होने से असतप्रतिपक्षत्व भी है । इस प्रकार से "मैत्री के पुत्रपना" हेतु में पांचों रूप विद्यमान हैं तीन रूप तो हैं ही हैं। फिर भी गर्भस्थ मैत्रीपुत्र का कालेपन से अविनाभाव नहीं है गोरा भी हो सकता है, अतएव तीनरूप के होने पर भी यदि अन्यथानुपपत्ति नहीं है तो वह हेतु अहेतु है। यदि अन्यथानुपपत्ति है, तो भले ही पांच रूप तीन रूप हो या न हों, उनका कोई महत्त्व नहीं है। इसलिये जैनाचार्य के कथनानुसार अन्यथानुपपत्ति को ही हेतु का लक्षण मान लेना चाहिये।
बौद्ध -हमारा यह अभिप्राय है कि नैरात्म्यवादी-माध्यमिक हम बौद्धों के यहाँ वास्तव में साधन, दूषण प्रयोग सिद्ध ही नहीं है, कि जिससे आप परमार्थ से बाह्य अर्थ एवं अंतस्तत्त्व ज्ञानादि को सत् वस्तुरूप सिद्ध कर सकें। एवं असिद्धहेतु से साध्य की सिद्धि भी सम्भव नहीं है क्योंकि अतिप्रसंग दोष आ जावेगा।
जैन-आपका यह भी सब कथन केवल प्रलापमात्र ही है, क्योंकि अनैरात्म्य अस्तिक्यवाद को दूषित सिद्ध नहीं किया जा सकता है, तथैव वास्तव में नैरात्म्य-शून्यवाद को सिद्ध भी नहीं किया जा सकता है, क्योकि संवत्ति-कल्पना से साध्य-साधन की व्यवस्था करना युक्तियुक्त नहीं है। और परमार्थ से उसे स्वीकार करो, तब तो नैरात्म्य में उसकी सिद्धि हो जाने पर भी सांवृतत्त्व का प्रसंग प्राप्त हो जावेगा। तथा च काल्पनिकहेतु से वास्तविकसिद्धि असंभव ही है। शून्यवाद की सिद्धि अवास्तविक हो जाने पर पुनः निराकृत नहीं किया गया है सद्भाव जिसका, ऐसे सभी अन्तस्तत्त्व
और बहिस्तत्त्व में अशून्यता का प्रसंग आ जावेगा। अर्थात् सभी चेतन-अचेतनतत्त्व का सद्भाव ही सिद्ध हो जावेगा और पुनः वह शून्यसाधन-हेतु विरुद्ध ही हो जावेगा।
भावार्थ-यदि आप शून्यवाद को सिद्ध करते समय ऐसा कहते हैं कि ये सब ज्ञानादि अन्तस्तत्त्व एवं बाह्य पदार्थ संवृत्ति से ही हैं वास्तविक नहीं हैं, तथैव शून्यवाद को सिद्ध करने में जो साध्य-साधन व्यवस्था है, उसे भी काल्पनिक कहते हो, तब तो उस काल्पनिकहेतु के द्वारा काल्पनिकअसत्यरूप ही साध्यरूप शन्यवाद सिद्ध होगा । एवं शून्यवाद की सिद्धि काल्पनिक हो जाने से वास्तव
1 आशंक्य । (ब्या० प्र०) 2 कल्पनया । (ब्या० प्र०) 3 स्या० हे नैरात्म्यवादिन् ! भवता नैरात्म्यं तत्त्वत: साध्यते कल्पनया वेति विचार: न तावत्परमार्थः नैरात्म्यमस्ति साधनाभावे तस्य साध्यत्वाऽघटनात् यथा साधनाभावेऽनरात्म्यस्य दूष्यत्वं न घटते । (दि० प्र०) 4 अपरमार्थत्वोपगमे इति पा० । (दि० प्र०) 5 शून्यस्य नैरात्म्यस्य । (दि० प्र०) 6 यदि शून्यसिद्धिरपरमार्थरूपा तदाऽनिराकृतरूपस्यान्यस्याशून्यत्वसिद्धिः । अतः वेद्यवेदकाकारलक्षणसमारोपरहितक्षणशून्यवादिनः सौगतस्यावतारः । (दि० प्र०) 7 सत्त्वस्य । (दि० प्र०)
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