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अभाव एकांत का खंडन
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प्रथम परिच्छेद
[ २३५
'अभावैकान्तपक्षेपि भावापह्नववादिनाम् । बोधवाक्यं प्रमाणं न केन' 'साधनदूषणम् ॥१२॥
[ नैरात्म्यवादस्य लक्षणं ] भावा येन निरूप्यन्ते तद्रूपं नास्ति तत्त्वतः । यस्मादेकमने च रूपं तेषां न विद्यते ॥ इति सर्वनरात्म्यप्रतिज्ञानमभावैकान्तपक्षः ।
[ नैरात्म्यवादे दोषारोपणं ] तस्मिन्नपि बोधस्य स्वार्थसाधनदूषणरूपस्य, वाक्यस्य च परार्थसाधनदूषणात्मनोसंभवात्तन्न प्रमाणम् । ततः केन साधनं नैरात्म्यस्य, स्वार्थं परार्थं वा ? केन दूषणं बहिरन्तश्च
[ जो बौद्ध सर्वथा अभावरूप ही तत्त्व स्वीकार करते हैं उनका खंडन ] कारिकार्थ-हे भगवन् ! पदार्थ का सर्वथा अपलाप करनेवाले अभावैकांतवादी माध्यमिकबौद्धों के यहां भी ज्ञान एवं वाक्य भी नहीं रहेंगे और पुनः बोधवाक्यों की प्रमाणता न होने से वे लोग स्वपक्ष का साधन और परपक्ष का दूषण भी कैसे कर सकेंगे? ॥१२॥
[ नैरात्म्यवाद का लक्षण ] श्लोकार्थ-जिस एकत्व या अनेकत्वस्वभाव के द्वारा पदार्थों का वर्णन किया जाता है, वास्तव में वह स्वरूप है ही नहीं, क्योंकि उन पदार्थों का एक और अनेक रूप है ही नहीं। अर्थात् तत्त्व एकरूप नहीं है, क्योंकि घट, पट आदिरूप से विचित्र प्रतिभास पाया जाता है एवं तत्त्व अनेकरूप भी नहीं है, क्योंकि उसको ग्रहण करने वाले प्रमाण का अभाव है । इस प्रकार सभी वस्तु नैरात्म्य निःस्वरूप (शून्य) स्वीकार करना अभावैकांतपक्ष है।
[ नैरात्म्यवाद में दोषारोपण ] उस अभावपक्ष में भी स्वार्थ साधन-दूषणरूप-स्वार्थानुमानरूप जो ज्ञान है और परार्थसाधनदूषणरूप जो परार्थानुमानरूप वाक्य हैं। अर्थात् स्व को समझने के लिये जो ज्ञान है, वह स्वार्था
1 सर्वनरात्म्यप्रतिज्ञाने शून्यकान्ते । (दि० प्र०) 2 बोधस्य स्वार्थसाधन दूषणरूपस्य । वाक्यस्य परार्थसाधनदूषणात्मनोऽसंभवा तन्न प्रमाणम् । (दि० प्र०) 3 ततश्च । ब्या० प्र०) 4 अभाववादिनां ज्ञानं वाक्यञ्च नास्ति तयोरभावे तन्मते प्रमाणं न । प्रमाणाभावे सति केन कृत्वा स्वार्थ नैरात्म्यस्य साधनं परार्थञ्च बहिरन्तर्भावस्वभावानां दूषणं घटतेऽपितु न घटते । स्वपक्षस्य नैरात्म्यस्य साधनम् । परपक्षस्य बहिरन्तर्भावस्वभावस्वरूपपदार्थस्य दूषणमिति यथासंख्यं ज्ञातव्यम् । (दि० प्र०) 5 एतत्कारिकाव्याख्याने । शून्यकान्तो निरंशैकज्ञानवादश्च यथावसरं निराक्रियत इति प्रतिपत्तव्यम् । एकेन घटपटादिरूपतया विचित्रप्रतिभासात् न चानेकं तद्ग्राहकप्रमाणाभावात् । (दि० प्र०)
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