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अष्टसहस्री
[ कारिका १०
[ अभिव्यक्तिं चतुर्धा विकल्प्य क्रमशः तासां निराकरणं ] ___ सा यदि' श्रवणज्ञानोत्पत्तिः, सैव कथं प्राक्सती यत्नतः कर्तव्या ? तस्याः प्रागसत्त्वे शब्दस्याश्रावणत्वापत्तेनित्यत्वविरोधः, प्रागश्रावणत्वस्वभावत्यागेनोत्तरश्रावणत्वस्वभावोत्पत्तेः कथञ्चिदनित्यत्वमन्त रेणानुपपत्तेः । अथ श्रवणज्ञानोत्पत्तेरभावेपि' पूर्वं शब्दस्य श्रावणत्वमेवेष्टं, किमनया श्रवणज्ञानोत्पत्त्याभिव्यक्त्या ? स्यान्मतं, न शब्दधर्मः श्रवणज्ञानोत्पत्तिः, तस्याः कर्मस्थक्रियात्वाभावात् । किं तहि ? पुरुषस्वभावः, कर्तृस्थक्रियात्वादिति, तदप्ययुक्तं, कर्तृवत्तस्याः 'प्राक्सत्त्वापत्तेरविशेषात्तद्व्यापारानर्थक्यात् । श्रवण
___ इस पर जैनाचार्य कहते हैं कि जब शब्द की अभिव्यक्ति शब्द से अभिन्न है तब इसे पौरुषेय मानकर प्रागभावरूप कहना तो ठीक नहीं है क्योंकि शब्द से अभिन्न होने से अभिव्यक्ति भी अपौरु
यी ही होनी चाहिये यदि कहें कि अभिव्यक्ति तो पौरुषेयी है तब तो इस स्थिति में उससे अभिन्न शब्द भी पौरुषेय (पुरुषकृत) हो जावेंगे, पुनः उनमें भी प्रागभाव मानना होगा। एवं तब शब्द भी हम जैनियों की मान्यता के समान अनित्य एवं पुरुषकृत ही सिद्ध होगा न कि नित्य अपौरुषेय ।
[ अभिव्यक्ति के चार भेद करके क्रमशः चारों का खण्डन करते हैं ] “यदि आप इन उपर्युक्त दोषों को दूर करने के लिये यह कहें कि वह अभिव्यक्ति शब्द से भिन्न ही है । वह श्रवणज्ञानोत्पत्तिरूप अभिव्यक्ति शब्द में पहले यदि सत्रूप है पुनः वह प्रयत्न पूर्वक क्यों की जाती है।" और यदि वह श्रवणज्ञानोत्पत्तिरूप अभिव्यक्ति शब्द में पहले असतरूप है तब तो शब्द-शब्द में अश्रावणोत्पत्ति का प्रसंग आ जावेगा। एवं नित्यत्व का विरोध हो जावेगा। अर्थात् पहले अश्रावणपना रहने पर एवं पश्चात् श्रावणपना के आने पर तो श्रावणत्वधर्म का उत्पाद और अश्रावणत्व का विनाश होने से अनित्यपना सिद्ध हो जाता है, क्योंकि पहला अश्रावणत्वस्वभाव का त्याग होने से ही उत्तरश्रावणत्वस्वभाव की उत्पत्ति होती है और वह कथंचित् अनित्यत्व के बिना सम्भव नहीं है।
यदि श्रवणज्ञानोत्पत्तिरूप अभिव्यक्ति के अभाव में भी पहले शब्द में श्रावणत्व- सुनाई देना ही इष्ट है, तब तो इस श्रवणज्ञानोत्पत्तिरूप अभिव्यक्ति से क्या प्रयोजन है ?
भावार्थ-यदि यह अभिव्यक्ति श्रवणज्ञानोत्पत्तिरूप है, तो पुन: इस विषय में प्रश्न हो सकता है कि यह श्रवणज्ञानोत्पत्तिरूप अभिव्यक्ति शब्द में पहले थी या नहीं ? यदि नहीं थी, तो इस पक्ष में शब्द में अश्रावणोत्पत्ति-शब्द का नहीं सुनाई देना होने से अनित्यत्व का प्रसंग आ जाता है
1 अभिव्यक्तिः । (दि० प्र०) 2 ता । (दि० प्र०) 3 मीमांसकः । (दि० प्र०) 4 तहि । (दि० प्र०) 5 स्याद्वादी। (दि० प्र०) 6 मीमांसकआह क्रिया द्वेधा । एका कर्भस्थक्रियाऽन्या कर्तृस्था । सा श्रवणज्ञानोत्पत्तिः कर्मस्थाक्रिया न भवति । किन्तु कर्तृस्था भवतीति चेत् । स्या० तदप्ययुक्तं । कुतः यथा कर्त्तापुरुषः प्राक्सन् तथा श्रवणज्ञानोत्पत्तेरपि प्राक्सत्त्वघटनात् । (दि० प्र०) 7 ता । (दि० प्र०) 8 पुरुषः । (दि० प्र०)
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