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इतरेतराभाव की सिद्धि ]
प्रथम परिच्छेद
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नैयायिकाभिमत शब्द अमूर्तत्त्व के खण्डन का सारांश
नैयायिक शब्द को अमूर्तिक आकाश का गुण अमूर्तिक ही मानता है। उसका कहना है कि "शब्द पदगल का स्वभाव नहीं है क्योंकि उसका स्पर्श नहीं पाया जाता है. सखादि के समान"। यदि शब्द को पुद्गल की पर्याय मानोगे तब तो उनका चक्षु से देखना, मर्यादा को उलंघन कर आगे भी फैलना, बिखरना, कर्ण में भर जाना, एक ही श्रोत्रेन्द्रिय में प्रवेश हो जाना आदि अनेक दोष आते हैं। __शब्द तो निश्छिद्र महल के भीतर से निकल जाते हैं, आभ्यंतर में बाहर से आकर प्रवेश कर जाते हैं, व्यवधान का भेदन भी नहीं करते हैं अतएव वे पौद्गलिक नहीं हैं । इस पर जैनाचार्य कहते हैं कि शब्द पुद्गल की ही पर्याय हैं अतः मूर्तिक हैं, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण से सहित हैं।
___ क्योंकि "स्पर्शरसगंधवर्णवन्तः पुद्गलाः" यह सूत्र है। बहुत से पुद्गल स्कन्ध भी ऐसे अचाक्षुष हैं जिनका स्पर्श आदि व्यक्त नहीं है एतावता उनको अमूर्तिक नहीं कह सकते एवं न उनका अभाव ही कर सकते हैं । शब्द से प्रतिघात भी देखा जाता है कोई मोटी एवं कड़ी पूड़ी आदि खा रहा है उसके कुड़कुड़ शब्दों से प्रायः प्रतिघात देखा जाता है एवं भवन भित्ति आदि से भी प्रतिघात देखा जाता है जैसे कोई पुरुष उच्च ध्वनि से पाठ कर रहा है और दूसरा धीरे-धीरे बोल रहा है तो उसकी ध्वनि दब जाती है। अतः शब्द का स्पर्श नहीं मानना गलत है।
जो आपने चक्षु आदि से दिखना चाहिये इत्यादि दोष दिये हैं वे सभी दोष गंध परमाणुओं में भी मानने पड़ेंगे क्योंकि गंध परमाणु पुद्गल की पर्याय हैं वे भी नहीं दीखते हैं। यदि आप कहें कि वे गंध परमाणु अदृश्य हैं अतः चक्षु इन्द्रिय से नहीं देखे जाते हैं पुनः शब्दों कोभी तथैव मानों क्या बाधा है ?
पवन से प्रेरित होने पर उन शब्दों का विस्तृत होना, बिखरना आदि मानों तो गंध परमाणुओं में भी मानना होगा। भित्ति आदि से गंध परमाणुओं का प्रतिघात प्रसिद्ध है तथैव शब्दों का भी प्रतिघात प्रसिद्ध है । जो आपने कहा कि स्कन्धरूप से परिणत मूर्तिमान शब्द परमाणुओं के द्वारा श्रोता का कान पूर्णतया भर जायेगा। पौद्गलिक शब्द एक ही श्रोता के एक ही कान में प्रविष्ट हो जायेंगे पुनः उसी योग्य देश में स्थित अन्य श्रोताओं को कुछ भी शब्द सुनाई नहीं पड़ेंगे। इत्यादि ये दोष तो आपके गंध परमाणु में भी आ जायेंगे। वे भी गंध परमाणु नाक में भर जायेंगे तो स्वास लेना ही कठिन हो जायेगा। वे एक के ही नाक में घुस जायेंगे तो अन्य किसी सूंघने वाले को कुछ भी गंध नहीं आ सकेगी। ___ इस पर नैयायिक ने कहा कि हमारे यहाँ ऐसा माना है कि सदृश परिणाम वाले गंध परमाणु सब तरफ फैल जाते हैं अतः ये दोष नहीं आते हैं। तब तो समान परिणाम वाले शब्द परमाणु भी नाना दिशाओं में फैल जाते हैं अतः एक श्रोता को ही सुनाई देवें इत्यादि दोष नहीं आते हैं। यदि
आप कहें कि गंध परमाणुओं की प्रतिपत्ति विशेष की अन्यथानुपपत्ति होने से निश्चय हो जाता है उसमें भाग्य की कल्पना नहीं है किन्तु शब्द के आगमन में भाग्य की कल्पना कीजिये।
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