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इतरेतराभाव की सिद्धि ] प्रथम परिच्छेद
[ १६१ "पारतन्त्र्यं हि संबन्ध:सिद्धेश् का परतन्त्रता । तस्मात्सर्वस्य भावस्य सम्बन्धो नास्ति तत्त्वतः" इत्यादिवचनान्न कस्यचित्संबन्ध्यन्तराणि स्वभावभेदनिबन्धनानि सन्तीति चेन्न,
[ जैनाचार्याः द्रव्यक्षेत्रकालभावप्रत्यासत्तिलक्षणं चतुर्विधसंबंध साधयंति ] 'द्रव्यक्षेत्रकालभावप्रत्यासत्तिलक्षणस्य संबन्धस्य निराकर्तुमशक्तेः । न हि 'कस्यचित्केनचित्साक्षात्परम्परया' वा संबन्धो नास्तीति, निरुपाख्यत्वप्रसङ्गात् । गुणगुणिनोः पर्यायतद्वतोश्च साक्षादविष्वग्भावाख्यसमवायासत्त्वे10 स्वतन्त्रस्य गुणस्य पर्यायस्य वाऽसत्त्वप्रसङ्गात् सकलगुणपर्यायरहितस्य द्रव्यस्याप्यसत्त्वापत्तिरिति1 तयोनिरुपाख्यत्वम् । गुणानां
श्लोकार्थ-सम्बन्ध ही परतन्त्रता है और जो सिद्ध हैं, उनमें परतन्त्रता क्या हो सकती है। अतएव सभी पदार्थों में वास्तव में सम्बन्ध नहीं है, इत्यादि कथन से स्वभाव के लिये कारणभूत ऐसा भिन्न-भिन्न सम्बन्ध किसी में भी नहीं है।
[ जैनाचार्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की निकटतालक्षण संबंध को सिद्ध करते हैं ] उत्तर-ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की प्रत्यासत्ति-निकटता-लक्षण संबंध का निराकरण करना अशक्य है।
किसी का किसी के साथ साक्षात् या परंपरा से संबंध नहीं हो ऐसा नहीं है । अन्यथा-निःस्वरूपत्व का प्रसंग प्राप्त हो जावेगा । पुनः द्रव्य प्रत्यासत्तिलक्षण संबंध को दिखाते हैं । तथाहि-गुण और गुणी में तथा पर्याय और पर्यायवान् में साक्षात् अविष्वग्भाव-लक्षण अर्थात् कथंचित् तादात्म्यलक्षण समवाय का अस्तित्व न मानने पर स्वतंत्ररूप से गुण अथवा पर्याय का अस्तित्व ही सिद्ध नहीं हो सकेगा।
पुनः संपूर्ण गुण और पर्याय से रहित द्रव्य के भी अस्तित्व के अभाव का प्रसंग प्राप्त हो जावेगा। इस प्रकार से उन गुण और पर्याय दोनों को निःस्वरूपपने का प्रसंग प्राप्त होगा। गुण और पर्यायों के भी परस्पर में अपने आश्रय रूप एकद्रव्य समवायसंबंध-कथंचित् तादात्म्यलक्षण संबंध का अभाव होने पर असत्व की आपत्ति के प्रकार से ही निरुपाख्यपना सिद्ध हो जावेगा ऐसा प्रतिपादन किया गयाहै।
1 वस्तनि । (ब्या० प्र०) 2 कारणे कार्योपचारात । (ब्या० प्र०) 3 आत्मादिपदार्थस्य (ब्या० प्र०) 4 स्वरूपस्य। (दि० प्र०) 5 सान्निध्य । (ब्या० प्र०) 6 गुणादेः । (दि० प्र०) 7 गुण्यादिना। (ब्या० प्र०) 8 मृद्रव्यम् । (ब्या० प्र०) 9 मुख्यम् । (ब्या० प्र०) 10 संबंधः । (ब्या० प्र०) 11 हेतोः । (ब्या० प्र०)
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