________________
१२२ ]
अष्टसहस्री
[ कारिका १० च 'तत्रास्येतरेतराभावः- परिकल्प्यते, येन तत्पक्षोपक्षिप्तदूषणावतारः स्यात् । नाप्येवं प्रागभावस्यानादित्वविरोधः, प्रागभावतत्प्रागभावादेः 'प्रागभावसन्तानस्यानादित्वोपगमात् । न चात्र 'सन्तानिभ्यस्तत्त्वान्यत्वपक्षयोः10 1 सन्तानो दूषणार्हः, 13पूर्वपूर्वप्रागभावात्मकभावक्षणानामेवापरामृष्टभेदानां14 15सन्तानत्वाभिप्रायात् । सन्तानिक्षणापेक्षया तु 1"प्रागभावस्यानादित्वाभावेपि न दोषः, तथा 19ऋजुसूत्रनयस्येष्टत्वात् । तथास्मिन्पक्षे 20पूर्व
तथा सन्तान की अपेक्षा से प्रागभाव को अनादि मानने पर सभी अनादि सन्ततिरूप पूर्व-पूर्व पर्यायें घट का प्रागभाव हैं ऐसा कहने पर भी प्रागनन्तर-अव्यवहित पर्याय की निवृत्ति के समान उन पूर्व-पूर्व पर्याय की निवृत्ति (अभाव) होने पर भी घट की उत्पत्ति का प्रसङ्ग नहीं आता है कि जिससे उन पूर्व-पूर्व पर्यायों की निवत्ति (अभाव) की परम्परा अनादि होने से आप उस घड़ेरूप कार्य को भी अनादि सिद्ध कर सकें। अर्थात नहीं कर सकते क्योंकि घट से पर्व अशेष क्षणपर्यायें भी जो कि उन-उन की प्रागभावरूप हैं, उन सभी पर्यायों का अभाव होने पर ही घट की उत्पत्ति होती है ऐसी हमारी मान्यता है क्योंकि प्रागनन्तर क्षण की निवृत्ति न होने पर तदन्यक्षण की निवृत्ति की तरह समस्त उन-उन प्रागभावों के निवृत्ति की असिद्धि होने से उन-उन प्रागभावों में घटोत्पत्ति का प्रसङ्ग असम्भव है।
अर्थात् यदि प्रागनन्तर पर्यायरूप प्रागभाव का अभाव (प्रध्वंस) नहीं होवे किन्तु समस्त पूर्व-पूर्व के अन्य प्रागभावों का अभाव हो जावे फिर भी घटकार्य उत्पन्न नहीं हो सकता है अतः घटकार्य की उत्पत्ति के लिये यह आवश्यक है कि उन सब प्रागभावरूप से इष्ट अनादि सन्ततियों के अभाव के साथ-साथ प्रागनन्तररूप अन्तिम पर्याय का भी निवृत्ति-अभाव होना चाहिये तभी विवक्षित घटकार्य की उत्पत्ति हो सकती है।
और व्यवहारनय (द्रव्याथिक नय) की विवक्षा करने से तो मृदादि द्रव्य घटादि के प्रागभाव है" ऐसा कथन करने पर भी प्रागभाव का अभाव स्वभावपना घट में दर्घट नहीं है कि जिससे "द्रव्य का अभाव (विनाश) असंभव होने से कदाचित् भी घट की उत्पत्ति नहीं हो सकती।" आपका यह कथन
1 (प्रागभावतत्प्रागभावादौ)। 2 (विवक्षितकार्यस्य)। 3 प्रागभावविनाशरूपताया एव व्यावर्तकत्वात् (प्रागभावविनाशरूपतवेतरेतराभावं व्यावर्तयति)। 4 इतरेतराभावपक्षोपक्षिप्तप्रागभाववैयर्थ्यलक्षण दूषणावतारः। 5 प्रागभावादितत्प्रागभावादिरूपप्रागभावसन्तानस्यैव विवक्षितकार्यव्यावर्तकत्त्वात् । (दि० प्र०) 6 प्रागनन्तरपरिणामस्य प्रागभावत्वप्रकारेण। 7 द्रव्यस्य। 8 एवं सति । 9 पर्यायेभ्यः । 10 तत्त्वमभेदः, अन्यत्वं तु भेदः । (कथञ्चिदभेदभेदाक्षयोरित्यर्थः)। 11 द्रव्यम् । 12 अभेदे सन्तानिन एव, न सन्तानः । भेदे संबन्धासिद्धियो: ? । 13 द्रव्यम् । (दि० प्र०) 14 अविवक्षितभेदानाम् । 15 न खल जैनाः सन्तानद्रव्यात्सन्तानिन: पर्यायाः सर्वथाभिन्ना इत्यामनन्ति किं तहि नानापर्यायात्मकद्रव्यलक्षणसन्तान इति । (ब्या० प्र०) 16 अनादित्वाभाव एवेष्टः । पर्यायापेक्षया सादित्वं वर्तते इति भावः। 17 प्रागनन्तरपरिणामस्य । (दि० प्र०) 18 प्रागनन्तरपरिणामस्यैव प्रागभावत्त्व 19 क्षणध्वंसिपर्यायार्थग्राहिणः। 20 घटात् । (दि० प्र०)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org