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प्रध्वंसाभावसिद्धि ]
प्रथम परिच्छेद
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'नयार्पणात्तावदुपादेयक्षण एवोपादानस्य प्रध्वंसः । न चैवं तदुत्तरक्षणेषु प्रध्वंसस्याभावात्पुनरुज्जीवनं घटादेः प्रसज्येत, कारणस्य 'कार्योपमर्दनात्मकत्वाभावात् , उपादानोपमर्दनस्यैव कार्योत्पत्त्यात्मकत्त्वात्, 'प्रागभावप्रध्वंस योरुपादानोपादेयरूपतोपगमात्प्रागभावोपमर्दनेन प्रध्वंसस्यात्मलाभात् । कथमभावयोरुपादानोपादेयभाव इति चेत् 'भावयोः कथम् ? 1 यद्भावे एव यस्यात्मलाभस्तदुपादानमितरदुपादेयमिति चेतहि प्रागभावे 12कारणात्मनि पूर्वक्षणवत्तिनि सति 13प्रध्वंसस्य कार्यात्मनः स्वरूपलाभोपपत्तेस्तयोरुपादानोपादेयभावोस्तु,
घट का प्रध्वंस है अर्थात् घट का प्रध्वंसाभाव उसकी कपालमाला है। यदि प्रध्वंस न होता तो कभी भी कार्य द्रव्य का अन्त न होता, परन्तु अन्त देखा जाता है अतएव प्रध्वंस का अस्तित्व सिद्ध ही है।
शंका-यदि उपादेयक्षण ही उपादान का प्रध्वंस है तब तो तदत्तर क्षणरूप जो कपालमाला के जो और भी खण्ड हैं उनमें प्रध्वंस का अभाव होने से अर्थात् प्रध्वस का लक्षण घटित न होने से घट की पुनरुत्पत्ति-पुन: घट के उत्पन्न होने का प्रसङ्ग प्राप्त होगा । अर्थात् घट के नाश होने से कपालमाला की उत्पत्ति हुई है वही घट का प्रध्वंस है। अब उस कपालमाला के जो और-और नवीन २ टुकड़े होते हैं वे उस घट के प्रध्वंस तो हैं नहीं वे तो कपाल के प्रध्वंस से ही हुये हैं अतः वहाँ उपादान-घट के प्रध्वंस का अभाव होने से उनमें उपादानरूप घट की पुनः उत्पत्ति प्राप्त हो जायेगी।
समाधान-यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि कारण कार्य का उपमर्दक नहीं होता है, प्रत्युत उपादान का उपमर्दन करके ही कार्य उत्पन्न होता है। एव प्रागभाव और प्रध्वसाभाव में उपादानउपादेयरूपता स्वीकार की गई है। अतः प्रागभाव के उपमर्दन से प्रध्वंस की उत्पत्ति होती है। अर्थात घट के प्रध्वंस से जो कपाल उत्पन्न हुये हैं वे घटरूप उपादान कारण से उत्पन्न हुये हैं और इन कपालों के जो उत्तरक्षण-अन्य २ खण्ड हैं वे कपालमालारूप अपने उपादान से उद्भूत हुये हैं अतः ये कार्य हैं । अब इनमें घट की उत्पत्ति इसलिये नहीं हो सकती है कि घटरूप कारण में कार्य की उपमर्दनात्मकता नहीं है कार्य में ही अपने कारण के उपमर्दनात्मकरूप धर्म की आधारता है, अतः उत्तर क्षणों में घट की पुनरुत्पत्ति का प्रसङ्ग नहीं होता है ।
प्रश्न-दोनों ही अभावों में उपादान, उपादेयभावरूप कारण-कार्यभाव कैसे हो सकता है ?
1 विवक्षातः । (दि० प्र०) 2 घटलक्षणोपादेयार्थ एव प्रागभावात्मककारणस्य प्रध्वंसः माह परः । तस्मात् घट लक्षणोपादेयक्षणादुत्तरोत्तरक्षणेषु प्रध्वंसाभावस्याभावात् घटादेः पुनरुज्जीवनं प्रसज्यते । स्या० एवं न । कुतः कारणं कार्यस्योपमईकं न भवति यतः तथा कार्य कारणस्योपमई कं भवत्येव यतः । (दि० प्र०) 3 प्रकृत । (ब्या
० प्र०) 5 कपालः । (ब्या० प्र०) 6विनाशः (ब्या० प्र०)। 7 तथापि प्रकृतपर्यनयोगस्य कः परिहार इत्याशंकायामाहुःप्रागभावेति । (दि० प्र०) 8 कपालापेक्षया । (दि० प्र०) 9 स्याद्वादी। (दि० प्र०) 10 यस्मिन् सत्त्येव । (दि० प्र०) 11 कपाल, घट । (दि० प्र०) 12 कपालानां स्वरूपे । (दि० प्र०) 13 मृदादिद्रव्य रूपप्रध्वंसः । (दि० प्र०) 14 प्रागभावप्रध्वंसाभावयोः । (दि० प्र०)
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