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अष्टसहस्री
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[ कारिका १० चेत् 'कथमेवं कार्यात्पूर्वपर्यायेण रहितेषु तत्पूर्वोत्तराखिलपरिणामेषु कार्यस्वभावत्वं न प्रसज्येत' ? प्रागभावाभावस्वभावत्वाविशेषेपि 'कश्चिदेवेष्ट: पर्यायः कार्य, न पुनरितरे परिणामा इत्यभिनिवेशमात्रम्' । स्यादाकूतं? 'कार्यात्प्रागनन्तरपर्यायस्तस्य प्रागभावः । "तस्यैव प्रध्वंस: कार्ये घटादि । न पुनरितरेतराभावो', येन तत्पूर्वोत्तरसकलपर्यायाणां घटत्वं 1प्रसज्येत । न च तेषां प्रागभावप्रध्वंसरूपतास्ति, 16तदितरेतराभावरूपतोपगमात्17, 18इति
कार्य के पूर्व की जो अनन्तर पर्याय है वही कार्य का प्रागभाव है। अभाव और उसी प्रागभाव का प्रध्वंस-अभाव होना ही घटादि की उत्पत्तिरूप कार्य है न कि इतरेतराभाव कार्य है जिससे कि उन पूर्वोत्तर सकल पर्यायों को घटपने का प्रसंग आवे । अर्थात् नहीं आ सकता है किन्तु उन पूर्वपूर्व पर्यायों में प्रागभाव की प्रध्वंसरूपता नहीं है क्योंकि उन पूर्व-पूर्व पर्यायों में इतरेतराभावरूपता स्वीकार की गई है।
भावार्थ-उन-उन पूर्वोत्तर पर्यायों में प्रागभाव का अभाव नहीं हो पाया है अतएव कार्य बन नहीं सकता इसीलिये उनमें इतरेतराभाव है । यह सब आप स्याद्वादियों का कथन सुगत मत का अनुसरण कर रहा है अर्थात् बौद्धों ने ऐसा माना है कि पूर्वक्षण का विनाश ही उत्तरक्षण की उत्पत्ति है । उसके अनुसार ही आपकी मान्यता सिद्ध हो जाती है और पुनः स्वमत का विरोध हो जाता है
के आपके यहाँ प्रागभाव को अनादि माना है। तथा च घट के पूर्व की अनन्तर पर्यायमात्र को प्रागभाव स्वीकार करने पर वह अनादि स्वीकारता विरुद्ध हो जाती है ।
जैन - द्रव्याथिकनय की अपेक्षा से हम प्रागभाव को अनादि मानते हैं ।
चार्वाक-तो फिर क्या इस समय मृदादि द्रव्य प्रागभाव रूप है ? यदि उस प्रकार से आप स्वीकार करें तो घट में प्रागभाव का अभाव स्वभाव कैसे घटेगा ? क्योंकि द्रव्य का अभाव असम्भव ही है अर्थात् वह अनादि अनन्त है पुनः प्रागभाव को नित्यपना प्राप्त होने से कदाचित् श्री घट की उत्पत्ति नहीं हो सकेगी। और यदि आप कहें कि घट से पूर्व की सभी पर्यायें अनादि सन्ततिरूप हैं इसलिये घट का प्रागभाव अनादि है । तब तो जैसे पूर्व की अनन्तर पर्याय के नष्ट होते ही घट उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार से अनन्तर पर्याय से पूर्व-पूर्व की व्यवहित पर्यार्यों के नष्ट होने पर भी घड़े की उत्पत्ति का प्रसंग आ जावेगा । पुन: ऐसा होने पर घट को अनादिपना सिद्ध हो जावेगा क्योंकि पूर्व-पूर्व पर्याय की निवृत्ति-अभावपरम्परा भी अनादि है।
1 चार्वाकः । 2 अनन्तरेण मृत्पिण्डलक्षणेन । 3 मृन्मात्रम् । कपालादि । (ब्या० प्र०) 4 पूर्वोत्तरपर्यायाणां प्रागभावाभावत्वाविशेषात् । 5 पृथबुध्नोदराकाररूपः। 6 घटलक्षणम् । 7 जैनस्य । 8 जैनस्य । 9 स्याद्वाद्याह । हे सौगत ! तवाभिप्राय एवं स्यात् । (दि० प्र०) 10 कार्यस्य। 11 प्रागभावस्य । 12 कार्यम् । 13 का। (दि० प्र०) 14 आशंक्य घटस्य । ता। (दि० प्र०) 15 तत्पूर्वोत्तरपर्यायाणाम्। 16 तेषां पूर्वोत्तरपर्यायाणाम् । 17 तत् तेषु पर्यायेषु अन्योन्याभावत्त्वांगीकारात् । (दि० प्र०) 18 इत्याकूतमिति संबन्धः ।
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