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प्रागभावसिद्धि
प्रथम परिच्छेद
[ ११७ भावः, परेण' विशिष्ट: प्रध्वंसाभावः, नानार्थविशिष्टः स एव चेतरेतराभावः, 'कालत्रयेप्यत्यन्तनानास्वभावभाव विशेषणोत्यन्ताभावः स्यात्, 'प्रत्ययभेदस्यापि तथोपपत्तेः सत्तैकत्वेपि द्रव्यादिविशेषणभेदाभेदव्यवहारवत् । यथैव हि सत्प्रत्ययाविशेषाद्विशेषलिङ्गाभावादेकत्वं' सत्तायामिष्टं भवद्भि"स्तथैवासत्प्रत्ययाविशेषाद्विशेषलिङ्गाभावाद सत्तायामप्येकत्वमस्तु । 1 अथ "प्राग्नासीदित्यादिप्रत्ययविशेषादसत्ता'5 चतुर्भेदेष्यते तहि प्रागासीत्पश्चाद्धविष्यति सम्प्रत्यस्तीति कालभेदेन, पाटलीपुत्रेस्ति चित्रकूटेऽस्तीति देशभेदेन, घटोस्ति पटोस्तीति द्रव्यभेदेन, रूपमस्ति रसोस्तीति गुणभेदेन, प्रसारणमस्ति गमनमस्तीति कर्मभेदेन च
तथा च हे नैयायिक ! यदि आप कहें कि एक ही प्रागभाव विशेषण के भेद से ही भिन्न-भिन्न उपचरित होता है जैसे घट का प्रागभाव अथवा पट का प्रागभाव इत्यादि, तब तो उत्पन्न हुये पदार्थों के विशेषणरूप से उस प्रागभाव का विनाश हो जाने पर भी उत्पत्स्यमान-उत्पन्न होने वाले पदार्थों के विशेषणरूप से नष्ट नहीं होगा अतः वह प्रागभाव नित्य भी हो जायेगा तब तो प्रागभाव आदि चार अभावों की भी कल्पना क्यों की जावे ? क्योंकि सर्वत्र एक ही अभाव में विशेषण के भेद से उस प्रकार प्रागभावादिरूप से भेद का व्यवहार बन जावेगा । यथा
कार्य के ही पूर्वकाल से विशिष्ट जो पदार्थ है वह प्रागभाव है और जो कार्य के ही पश्चात् काल से विशिष्ट है वह प्रध्वंसाभाव है। एवं वही अभाव नाना पदार्थों से विशिष्ट होने से इतरेतराभावरूप है और वो अभाव तीनों कालों में भी अत्यन्त नानास्वभाव-भावरूप विशेषण से विशिष्ट होने से अत्यन्ताभाव हो जावेगा क्योंकि प्रत्यय-ज्ञान में भेद भी उसी प्रकार विशेषण के भेद से भेदरूप देखा जाता है जैसे कि सत्ता के एक होते हुये भी द्रव्यादि विशेषण के भेद से भेद व्यवहार पाया जाता है क्योंकि आप यौग ने जिस प्रकार से सत्प्रत्यय समान होने से एवं विशेष लिङ्ग का अभाव होने से सत्ता में एकत्व स्वीकार किया है। उसी प्रकार से असत्-अभाव प्रत्यय समान होने से एवं विशेष लिङ्ग का अभाव होने से असत्ता-अभाव में भी एकपना हो जावे बाधा क्या है ?
योग-"प्राङ्नासीत्" इत्यादि पहले नहीं था इत्यादिक प्रत्यय-ज्ञानविशेष देखा जाता है अतएव असत्ता (अभाव) के चतुर्भद हो जाते हैं।
1 उत्तरेण कालेन । (ब्या० प्र०) 2 अर्थः । (ब्या० प्र०) 3 अभावः । (ब्या० प्र०) 4 सर्वथा भिन्नस्वभाव: अत्यन्तनानास्वभावो भावो गन्धात्मादिः। 5 रूपात्मादि आत्मद्रव्यपृद्गलद्रव्यादि । (ब्या० प्र०) 6 अभावः । (ब्या० प्र०) 7 प्रागनासीद्घट: प्रध्वस्तो वेत्यादेः। 8 विशेषणभेदप्रकारेण । 9 यौगः । (ब्या० प्र०) 10 अपरसामान्यस्य । (ब्या प्र०) 11 सांख्ययोगादिभिर्भाववादिभिः । (दि० प्र०) 12 अभावे । 13 भाववादी । (दि० प्र०) 14 अभावः । (दि० प्र०) 15 अभावः । (दि० प्र०) 16 अभाववादी । (दि० प्र०) 17 (योगमते द्रव्यादित्रिकवृत्तित्वादेव सत्तायाः सामान्यादिषु नोक्तम्) ।
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