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अष्टसहस्री
[ कारिका ८ यदि कोई कहे कि शून्यवादी एवं अद्वैतवादियों ने कुशल, अकुशल कर्म एवं परलोक आदि को माना ही नहीं है अन्यथा शून्यवाद का ही अभाव हो जावेगा और अद्वैत में द्वैतवाद भी हो जावेगा। पुन: आपने ऐसा क्यों कहा कि "सभी एकांतवादियों के यहाँ ये दुर्घट हैं।" सो आपका यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि उन लोगों ने भी संवृति से या अविद्या से प्रायः पुण्य-पाप, सुख-दुःखादि कर्म एवं परलोक गमन आदि को माना ही है। तथा सर्वथा सत् अथवा सर्वथा असत् या सर्वथा नित्य, अनित्य आदि किसी भी एकांत में परलोकादि संभव नहीं हैं। सर्वथा सत् की उत्पत्ति ही असंभव है, सर्वथा असत् की उत्पत्ति भी असंभव है जैसे आकाश पुष्प।
एवं कूटस्थ नित्य अपरिणामी आत्मा आदि भी क्रम या युगपत् से अर्थ क्रिया को करने में असमर्थ हैं। तथैव सर्वथा क्षणिक वस्तु भी अपने अस्तित्वकाल के पूर्व और पश्चात् अत्यन्त असत् होते हुये सर्वथा अर्थक्रिया को करने में असमर्थ है अतः स्याद्वाद में ही सभी व्यवस्थायें सुघटित हैं।
उपसंहार-आचार्यों ने यहाँ यह स्पष्ट किया है कि एकांत के हठाग्रही जनों के यहाँ पुण्यपापादि की व्यवस्था असंभव है। प्रत्येक वस्तु अनंतधर्मात्मक है अतः अनेकांत धर्म ही निर्दोष है ।
भावैकांत के खंडन का सारांश सांख्य भावरूप ही सभी तत्त्व मानता है अभाव को मानता ही नहीं है ।
सांख्य-हमारे यहां व्यक्त और अव्यक्त में इतरेतराभाव तत्स्वभावरूप है, प्रकृति एवं पुरुष में अत्यंताभाव तद्रूप ही है तथैव महान् अहंकार आदि में प्रागभाव स्वकारण स्वभाव है एवं महाभूतादि में प्रध्वंसाभाव स्वांतर्भावाश्रयरूप है। अर्थात् स्वमहाभूत उसमें अंतर्भाव, उस अंतर्भाव का आश्रयरूप है । जहाँ-जहाँ महाभूत लीन होते हैं वह महाभूत कारण द्रव्य है। अतएव हमारे यहां ये अभाव स्वभावरूप होने से हम अभाव को मानते ही नहीं हैं।
जैन-ऐसा मानने पर तो आपका भाकांत नहीं रहता है। एवं सभी पदार्थ भावाभावात्मक सिद्ध होने से आप जैन बन जायेंगे । यदि सर्वथा भाव स्वभाव ही मानोगे तब तो आपके यहाँ अनेक दोष आते ही हैं।
अभाव के ४ भेद हैं । प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, इतरेतराभाव और अत्यंताभाव ।
यदि प्रागभाव अर्थात् मिट्टी में घड़े के प्रागभाव को न मानें तो सभी कार्य अनादि हो जावेंगे। यदि प्रध्वंसाभाव का लोप करते हैं तो सभी वस्तु अनंतरूप हो जावेंगी तथा इतरेतराभाव के बिना सभी वस्तु सर्वात्मक हो जायेंगी एवं अत्यंताभाव का लोप करने पर सभी वस्तुयें सर्वात्मक हो जावेंगी अतएव किसी वस्तु में निजी स्वरूप ' की व्यवस्था न होने से सभी वस्तुयें निःस्वरूप हो जावेंगी।
* यह सारांश पृष्ठ १०० का है। कारिका दसवीं के पहले पढ़ना चाहिये।
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