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भाव एकान्त का निरास ]
प्रथम परिच्छेद
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1"त्रिगुणमविवेकि2 विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवर्मि।
व्यक्तं तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान् ।" इति तल्लक्षणभेदकथनव्याघातः ।
[ प्रागभावाभावे महदाद्या न भविष्यति । ] प्रागभावस्यापह्नवे महदहङ्कारादेविकारस्यानादित्वप्रसङ्गः । तथा च
श्लोकार्थ-जो सत्त्व, रज, तम इन तीन गुणों से सहित है, अविवेकी-भेद रहित है, विषयभोग्यरूप है, सामान्य है, अचेतन एवं प्रसवधर्मी-महदादि को उत्पन्न करने वाला है वह व्यक्त और अव्यक्त दोनों से ही विलक्षण पुरुष है । इस प्रकार इन तीनों का लक्षण भिन्न-भिन्न होने से भेद प्रसिद्ध ही है और अत्यन्ताभाव का अभाव करने से सभी वस्तु (प्रधान और पुरुष) सर्वात्मक, सभी रूप हो जावेंगे।
भावार्थ-इतरेतराभाव यदि नहीं माने तो किसी ने कहा आप मनुष्य हैं उस समय आप में दूसरी पर्याय का अभाव न करने से आप घोड़ा, हाथी आदि सभी रूप बन जावेंगे उसका निवारण इतरेतराभाव के बिना कौन कर सकेगा? तथैव अत्यन्ताभाव का सर्वथा अभाव करने से चेतन अचेतन बन जावेगा एवं अचेतन चेतन हो जावेगा पुनरपि सभी पदार्थ सभीरूप ही हो जावेंगे एवं अपने मूल स्वभाव को छोड़ देने से स्वभाव शून्य अस्वरूप हो जावेंगे।
[ प्रागभाव के अभाव में महान् अहंकार आदि कार्य नहीं होंगे। ] उसी प्रकार प्रागभाव का निन्हव करने पर महान् अहंकार आदि विकार अनादि हो जावेंगे । अर्थात् मिट्टी में घड़े का प्रागभाव है यदि प्रागभाव को नहीं मानोगे तब तो सदैव मिट्टी में घड़ा बना रहेगा सभी कारणों में-बीजादिकों में अङ्कुररूप कार्य स्पष्टरूप तैयार ही रहेगा। पुनः सभी वस्तुयें सदैव विद्यमान रूप ही दीखेंगी किन्तु ऐसा है नहीं ।
इलोकार्थ-तथा च "प्रकृति से महान् (सृष्टि के अंत पर्यंत रहने वाली बुद्धि) महान् से अहंकार उससे १६ गण होते हैं तथा उस षोडश में पंच तन्मात्रा से पांच भूत उत्पन्न होते हैं।" इस प्रकार आप सांख्यों के द्वारा मान्य सृष्टि के क्रम का विरोध हो जावेगा।
1 सत्त्वरजस्तमोगुणयुक्तम् । 2 भेदरहितम् । 3 आत्मनो भोग्यरूपम्। 4 साधारणम् । (दि० प्र०) 5 प्रसूते इति प्रसूतिर्वा प्रसवः । प्रधान कारणं प्रसवधर्मीति महदादिकार्योत्पादकम् । व्यक्तं प्रसवधर्मीति कार्यरूपम् । अथवा कारणरूपं कथम् ? महतोहङ्कारस्ततः पञ्च तन्मात्राणि, पञ्च तन्मात्रेभ्यः पञ्च भूतान्युत्पद्यन्ते इति कारणव तस्य। 6 व्यक्तप्रधानाभ्यां विपरीतः। 7व्यक्ताव्यक्तयोरेवंलक्षणत्वे सति। 8व्यक्ताव्यक्तपूरूषाणाम् ।
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