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भावएकान्त का निरास ]
प्रथम परिच्छेद
[ ६६ [ सत्ताद्वैतवादी वेदात् एकब्रह्म साधयितुं प्रयतते तस्य विचारः ] आम्नायात्तत्सिद्धिरित्यप्यसंभाव्यं, तस्यापि साध्यादभेदे 'साधनत्वायोगात् । ततः साध्यसाधनयोरभेदे किं सत्ताद्वैतं केनानुमानेनागमेन प्रत्यक्षेण वा प्रमाणेन साधितं स्यात्, 'पक्षसपक्षविपक्षाणामाम्नायस्येन्द्रियादेश्चानुमानागमप्रत्यक्षज्ञानात्मकप्रमाणकारणस्याभावान्नैवं तत्कृतं स्यात् । न क्वचिदसाधना12 साध्यसिद्धिः, अतिप्रसङ्गात् * । साधनं हि प्रमाणं साध्यते निश्चीयतेऽनेनेति । तद्रहिता न साध्यस्य प्रमेयस्य सिद्धिः, शून्य-14
[ सत्ताद्वैतवादी आगम से एक ब्रह्म की सिद्धि करना चाहता है उस पर विचार ] ब्रह्माद्वैतवादी-आम्नाय-वेद से उस ब्रह्मावत की सिद्धि हो जाती है।
जैन-यह कथन भी असंभव है क्योंकि आपका वह आगम भी साध्य-परमब्रह्म से अभिन्नरूप हो है अतः वह आगम भी ब्रह्म की सिद्धि करने में असमर्थ ही है । अतएव साध्य-साधन में अभेद के स्वीकार करने पर आपका सत्ताद्वैत किसी अनुमान से अथवा आगम से अथवा किसी प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध हो सकता है क्या ? अर्थात् नहीं हो सकता है क्योंकि पक्ष, सपक्ष और विपक्ष अनुमान प्रमाण में कारण हैं । तथा वेद आगम प्रमाण में कारण हैं उसी प्रकार से इन्द्रियादिक प्रत्यक्ष प्रमाण में कारण हैं ।
उपर्युक्त अनुमान, आगम और प्रत्यक्ष प्रमाण के कारणों का अभाव होने से उन-उन प्रमाणों से वह परमब्रह्म सिद्ध नहीं हो सकेगा। क्योंकि कहीं पर भी साधन रहित साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती है । अन्यथा अतिप्रसंग दोष आ जावेगा। जिसके द्वारा साध्य सिद्ध किया जाता है—निश्चित किया जाता है वही साधन है अतएव वह प्रमाण है अर्थात् सच्चा ज्ञान है । क्योंकि साधन प्रमाण से रहित साध्यरूप प्रमेय की सिद्धि नहीं हो सकती है। अन्यथा शन्यवाद आदि की भी सिद्धि का प्रसंग आ जायेगा।
ब्रह्माद्वैत-स्वरूप का स्वयमेव ही ज्ञान हो जाता है । पुनः हेतु आदि के प्रयोग की आवश्यकता ही क्या है ?
1 वेदात् । 2 सर्वं वै खल्विदं ब्रह्मेत्त्याद्यागमाद् ब्रह्माद्वैतसिद्धिरस्तु । (दि० प्र०) 3 आगमस्य । (दि० प्र०) 4 ब्रह्मणः । 5 तस्यापि साध्यादभेदे तत्साधनत्त्वविरोधात्साध्यस्वात्मवत्प्रत्यक्षात्तत्सिद्धिरनेनैव प्रयुक्ता । इति अधिक: पाठः । (दि० प्र०) 6 यत एवम् । (दि० प्र०) 7 अत्र सपक्षाम्नायेन्द्रियादिकं भाष्ये आदिशब्दाद् गृहीतं प्रतिपत्तव्यं द्वितीयार्थे । (दि० प्र०) शब्दरूपरूपस्य । (दि० प्र०) 8 (पक्षसपक्षविपक्षा अनुमानप्रमाणे कारणम् । आम्नायः आगमकारणम् । इन्द्रियादि तु प्रत्यक्ष कारणम्)। 9 सर्वस्य सर्वथकरूपत्त्वात । (दि० प्र कृतं, साधितम् । अथवा तैः प्रमाणः कृतं साधितं तत्कृतम् । 11 पक्षे । (दि० प्र०) 12 प्रमाणरहिता । (दि० प्र०) 13 अन्यथा । (दि० प्र०) 14 सत्ता स्वयमेव प्रकाशत इति शंका निराकरोति । (ब्या० प्र०)
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