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अष्टसहस्री
[ कारिका
स्यादानुमानिकी ? न हि निरुपाख्यस्य स्वभावः 'कश्चित्संभवति, भावस्वभावत्वप्रसङ्गात् । नापि 'कार्य, 'तत एव । इति कुतः स्वभावात्कार्याद्वा हेतोस्तत्प्रमितिः ? 'अनुपलब्धिः 'पुनस्तस्यासिद्धिमेव व्यवस्थापयेदिति ततोपि न तत्प्रमितिः । 10भावानामनुपलब्धेस्तत्प्रमितिरित्यपि न सम्यक्, 12ततो 13भावान्तरस्वभावस्यवाभावस्यावभासनात् । एतेन 14विरोधिलिङ्गा निरुपाख्यस्याभावस्य प्रमितिरपास्ता । सदुपलम्भकप्रमाणपञ्चक"निवृत्तेस्तत्प्र
तुच्छाभावरूप अभाव का कोई भी स्वभाव संभव नहीं है, अन्यथा उसे भाव स्वभाव का प्रसंग आ जावेगा। वह कार्यरूप भी नहीं है, अन्यथा वही भाव स्वभाव का प्रसंग आवेगा । इसलिये स्वभावहेतु अथवा कार्यहेतु से किस प्रकार से उस अभाव की प्रमिति होगी?
यदि आप कहें कि अनुपलब्धि हेतु से अभाव का ज्ञान होगा यह भी ठीक नहीं है क्योंकि वह अनुपलब्धि हेतु तो अभाव की असिद्धि को ही व्यवस्थापित करेगा। अर्थात् अनुपलब्धि हेतु तो यही कहेगा कि अभाव-तुच्छाभाव नहीं है । अतएव इस अनुपलब्धि से भी उस अभाव का ज्ञान नहीं होगा।
शंका-पदार्थों की अनुपलब्धि से उस अभाव का ज्ञान हो जावेगा।
समाधान---यह भी कथन ठीक नहीं है क्योंकि उस अनुपलब्धि से भावान्तर स्वभाव भूतललक्षण आदि स्वरूप का ही अभाव प्रतिभासित होता है न कि तुच्छाभावरूप अभाव । ____ तथा च इसी कथन से उनका भी खंडन कर दिया गया समझना चाहिये कि जो विरोधी लिंग से-अभाव विरोधी भावलिंग से तुच्छाभावरूप अभाव का ज्ञान स्वीकार करते हैं।
शंका-सदुपलम्भकप्रमाण पंचक की प्रवृत्ति न होने से उस अभाव का ज्ञान होता है। अर्थात् "यहाँ घट का अभाव है शुद्धभूतल की उपलब्धि होने से” अथवा “यहाँ शीतस्पर्श नहीं है क्योंकि अग्नि विद्यमान है।" सत्ता को ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति इन पांच प्रमाणों की निवृत्ति हो जाने से घट के अभाव का ज्ञान स्वयं हो जाता है ।
समाधान-यह कथन भी मिथ्या है। वह सदुपलम्भकप्रमाण पंचक निवृत्ति भी तुच्छाभावरूप अभाव में ज्ञान को उत्पन्न नहीं कर सकती है क्योंकि आत्मा-पुरुष सदुपलम्भकप्रमाण पंचक रूप से प्रसज्य प्रतिषेधरूप अभाव का प्रमाणपने से विरोध है। 1 अन्यथा । (दि० प्र०) 2 लिङ्गरूपम् । 3 भावस्वभावत्वप्रसङ्गात् । 4 अभावप्रमितिलिङ्गजा। 5 अभावज्ञानेनुपलब्धिहेतुः। 6 हेतुः । (दि० प्र०) 7 अभावस्य । 8 तुच्छाभावो नास्तीति। 9 अनुपलब्धेः । (दि० प्र०) 10 घटादीनाम् । (दि० प्र०) 11 का। (दि० प्र०) 12 भावत्वे सत्यनुपलब्धेरिति हेतोः। 13 भूतललक्षणादेः । 14 अभावप्रमितिजनकस्याभावप्रमाणस्य लक्षणं सामान्यतो विशेषतश्च, 'प्रत्यक्षादेरनुत्पत्ति: प्रमाणाभाव उच्यते । सात्मनोऽपरिणामो वा विज्ञानं वान्यवस्तुनि' इति यदुक्तं भट्टेन तत्सर्वं क्रमेण दूषयन्नाह द्वती। 15 अभावविरोधी भावो यतः। 16 यदुक्तं भक्तेन । अभावप्रमितिजनकस्याभावप्रमाणस्य लक्षणं सामान्यतोविशेषतश्च । प्रत्यक्षादेरनुत्पत्ति प्रमाणाभाव उच्यते । सात्मनोऽपरिणामो वा विज्ञानञ्चान्यवस्तुनीत्येतत्सर्व क्रमेण दूषयन्नाह । (दि० प्र०) 17 अस्त्यत्र घटाभावः शुद्धभूतलोपलम्भादिति । नास्त्यत्र शीतस्पर्शः, अग्नेरिति च ।
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