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अष्टसहस्री
[ कारिका नर्तक्यादिक्षणकशक्तावपि' 'बुध्द्यादिकार्यनानात्वाच्छक्तिनानात्वप्रसङ्गात् तथा तच्छक्तावपि । इति सुदूरमपि गत्वा बुध्द्यादिप्रसवविशेषसद्भावेपि शक्तिनानात्वाभावे कथं "नासौ व्यभिचारी स्यात् ? इति कुतो वस्तुनानात्वगतिः ?
[ सत्ताद्वैतवादी सर्ववस्तु एकस्वरूपं साधयितुं यतते तस्य विचारः ] 'केवलम विद्या' 10स्वभावदेशकालावस्थाभेदानाऽऽत्मनि1 परत्र वा सतः13 स्वयमसती 14मिथ्याव्यवहारपदवीमुपनयति यतः 16क्षणभनिनो भिन्नसंततयः स्कन्धा18 19विकल्पेरन्नन्यथा वा इति * सत्ताद्वैतवादी विशेषानपन्हुवीत तद्रूपादिस्कन्धानां21 22द्रव्यादिपदार्थानां
में भी शक्तिनानात्व का अभाव स्वीकार कर लेने पर तो यह कार्यविशेष हेतु व्यभिचारी क्यों नहीं होगा ? अर्थात् यह हेतु व्यभिचारी ही है। और इस प्रकार से वस्तु में अनेकपने का ज्ञान कैसे सिद्ध होगा ? अर्थात् नहीं सिद्ध होगा।
[ सत्ताद्वैतवादी सभी वस्तु को एकस्वरूप सिद्ध करना चाहता है उस पर विचार ] "स्वभाव, देश, काल एवं अवस्था से जो भेदरूप हैं, जो कि अपने में अथवा पर में विद्यमानरूप प्रतिभासित हो रहे हैं। अथवा पाठ भेद से ऐसा अर्थ करना कि जो भेद अपने और पर में अविद्यमानरूप हैं उन्हें स्वयं असत्रूप केवल अविद्या ही मिथ्या व्यवहार पदवी को प्राप्त कराती है अर्थात् यह सब भेद असतरूप हैं ऐसा बताती है। इसी कारण से बौद्धों के द्वारा भिन्न-भिन्न सन्तानरूप, क्षणभंगुर स्कन्ध अनुमित किये जावें और नैयायिक अथवा सांख्यों के द्वारा अन्यथा-नित्यरूप एक संततियाँ विकल्पित-अनुमित की जावें यह ठीक नहीं है।"
अर्थात् बौद्ध पांच स्कंध को स्वीकार करता है वह भी कल्पनामात्र है एवं सांख्य या यौग नित्य एक संतान स्वीकार करते हैं वह कल्पनारूप असत् ही है। इस प्रकार से सत्ताद्वैतवादी कहता है । उसी को स्पष्ट करता है।
1 नर्तक्यादिक्षणस्य नानाशक्तयः सन्ति । तासां मध्ये एकशक्ती। 2 एकनर्तक्यादिक्षणे इव प्रसक्ता । (दि० प्र०) 3 त्वोपगमात् । बुद्धयादिः । प्रसवविशेषोऽव्यभिचारीति चेदिति पाठः। (दि० प्र०) 4 एकशक्तावागतनानाशक्तिष मध्ये विवक्षितकशक्ती ताः शक्तयः । तासु प्रत्येकमपीत्यर्थः। 5 (अनवस्थाप्रकारेण)। 6 प्रसवविशेषः। 7 पुनः सत्ताद्वैतवादी स्वमतं व्यवस्थापयति । (दि० प्र०) 8 वस्तुनानात्वाभावे देशकालावस्थाभेदाः कथं घटन्ते इत्याशङ्कायामाह। 9 की । (दि० प्र०) 10 बालकादिपर्याय । (दि० प्र०) 11 एव इति । (दि० प्र०) 12 घटादौ । (दि० प्र०) 13 विद्यमानान् पदार्थान् । 14 मार्गम् । (दि० प्र०) 15 अविद्या। 16 सौगताभ्युपगतानि क्षणविनश्वराणि विज्ञानादि पञ्चस्कन्धाश्च आदिशब्देन सांख्यानां प्रकृत्त्यादि पञ्चविंशतितत्त्वानि अन्येषामपि मतानां तत्त्वानि कूतो भवेयून कृतोपि । (दि० प्र०) 17 (बसः)। 18 विज्ञानं वेदना संज्ञा संस्कारो रूपमेव चेति पञ्चकन्धा बौद्धा. भिमताः। 19 (बौद्धाभिमताः)। 20 यौगाद्यभिमता अक्षणिका नित्या एकसंततयश्च (तेपि मिथ्यवेत्यर्थः)। 21 सौगतोक्तानाम् । 22 नैयायिकोक्तानाम् ।
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