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भाव एकान्त का निरास ]
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प्रत्यक्षम् ।
'जडात्मनः । ततः स्मृतिनिरपेक्षमेव सर्वं तच्च यद्यभावविषयं स्यात्तदा भावदर्शनमनवसरमेव, “तत्कारणाभावात् । प्रतिपत्तुर्भावदिदृक्षा भावदर्शनकारणमित्यपि न सम्यक्, पुरुषेच्छानपेक्षत्वात्प्रत्यक्षस्य, सत्यामपि घटदिदृक्षायां ' ' तद्विकले प्रदेशे दर्शनाभावादसत्यामपि सति घटे दर्शनसद्भावात् । इति न प्रत्यक्षमभावं प्रत्येति, तस्य सन्मात्रविषयत्वात्तत्रैव " प्रमाणत्वोपपत्तेरव्यभिचारात्" ।
प्रथम परिच्छेद
[ अनुमानप्रमाणेनाप्यभावस्य ज्ञानं भवन्तीति ब्रह्माद्वैतवादी ब्रूते । ]
12 सकलशक्तिविरहलक्षणस्य 13 निरुपाख्यस्य 14 15 स्वभावकार्यादेरभावात्कुतस्तत्प्रमिति: 16
कौन श्रद्धान करेगा ? अतएव सभी प्रत्यक्ष स्मृति निरपेक्ष ही हैं यह बात सिद्ध हो जाती है । यदि वे प्रत्यक्षज्ञान अभाव को विषय करने वाले हो जावेंगे। तब तो उन्हें भावरूप पदार्थों को ग्रहण करने का अवसर ही नहीं मिलेगा क्योंकि उस भाव के कारणों का अभाव है । अर्थात् पहले उस कमरे में घट को देखा था अब वह नहीं है अतः उस घट का स्मरण हुआ पुनः घट से भिन्न शुद्धभूतल को देखकर घट के अभाव ज्ञान को उत्पन्न करे यह कथन पानी में पत्थर की शिला को तैराने के समान ही अज्ञानस्वरूप है ।
योग - ज्ञाता की जो पदार्थों को देखने की इच्छा है वह भाव-पदार्थ को देखने में कारण है ।
ब्रह्माद्वैती - यह कथन भी समीचीन नहीं है क्योंकि प्रत्यक्षज्ञान पुरुष की इच्छा की अपेक्षा से रहित है । घट को देखने की इच्छा के होने पर भी घट से रहित प्रदेश में घट के दर्शन का अभाव है और इच्छा के होने पर भी यदि घट विद्यमान है तो वह दीख जाता है । अत: प्रत्यक्ष प्रमाण अभाव को विषय नहीं करता है । वह सत्तामात्र को ही विषय करता है और उसी विषय में ही वह प्रमाणीक है तथा व्यभिचार दोष से रहित है ।
प्रश्न (योग) - प्रत्यक्ष से अभाव की प्रतिपत्ति न हो तो न सही किंतु अनुमान से तो होगी ही
होगी ।
[ अनुमान प्रमाण से भी अभाव का ज्ञान नहीं होता है ऐसा ब्रह्माद्वैतवादी कहते हैं । ] उत्तर (ब्रह्माद्वैती) - सकल शक्तिविरहलक्षणनिरुपाख्य - -अभाव को स्वभावलिंग और कार्यरूप लिंग से जानने का अभाव है तो किस प्रकार से अभाव का ज्ञान आनुमानिक होगा ?
1 यौगात् । 2 प्रत्यक्षस्य स्मृतिसापेक्षत्वेऽपूर्वार्थ साक्षात्कारित्वं विरुद्धं यतः । 3 प्रत्यक्षम् । (दि० प्र०) 4 अभाव -
दर्शनम् । ( दि० प्र० ) 5 घटाद्यर्थं द्रष्टुमिच्छायाम् । ( दि० प्र० ) 6 घटः । ( दि० प्र०) 8 दिदृक्षायाम् । (ब्या० प्र० ) 9 प्रत्यक्षस्य । ( दि० प्र०) 10 सन्मात्रे | ( दि० प्र० ) ( दि० प्र० ) 12 मास्तु प्रत्यक्षादभावप्रतिपत्तिः । अनुमानात्तु संभवतीत्युक्ते आह । 14 अर्थक्रियालक्षणसकलशक्तिरहितस्य निःस्वभावस्य वस्तुनः स्वभावकार्यानुपलब्धिलिङ्गानामभावात् । अनुमानेनापि अभावनिश्चितिर्नभवेत् । ( दि० प्र०) 15 स्वभावलिङ्गस्य कार्यरूपलिङ्गस्य च । 16 नेति पाठः । ( दि० प्र०)
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7 घटस्य । ( ब्या० प्र० ) 11 निःस्वभावस्याभावस्य । 13 निःस्वभावस्याभावस्य ।
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