________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4.अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी: 3 तत्थ अपसत्थे डोडिणि गणियाय मच्चाईणं, पसत्थे गुरुमाईणं. से तं नो आगमओ। तद्यथा-प्रशस्त और अप्रशस्त. इस में अप्रशस्त उपक्रम से ब्राह्मणी की गणिका की और प्रधान की बुद्धि. इन तीनों की संक्षेप से कथा करते है- एक ब्राह्मणीने अपनी तीनों पुत्रियों को पाणिग्रहण कराकर कहा कि तुम अपने पति को किसी प्रकार के अपराध में लाकर उस के पाद प्रहार करना और नो होवे सो सब वृत्तात मुझे कहना. तीनों ने डासही प्रकार किया.उस में एक के पति ने प्रसन्न हो कहा कि मेरे कठिन मस्तक में तेरे पांव से प्रहार करने से तेरे कोमल पांव को इजा हुई होगी। सो माफ कर. दुसरी के पति ने उत्तम स्त्री को ऐसा करना योग्य नहीं है यों कहकर क्रोधित होकर कशान होगया. और तीसरी के पति ने उसे घर से बाहिर नीक दी. तीनोंने अपने माता को वीतक वार्ता कही. माताने प्रथप पुत्री से कहा तू निश्चित रहे. तेरा पति तेरी आज्ञा में रहेगा. दूसरी से भी कहा तू भी निश्चित रहे. कदापि तेग पति कुपित होगा तो शांत हो जायगा. और तीसरी से कहा यदि तू मुख की अभिलाषा करती हो तेरे पति की आज्ञा में सदैव रहना यों पत्री और उनके पति का अभिमाय जाना सो ब्राह्मणी की बुद्धि जानना. किसी वेश्याने जगत के प्रतिहित 2 पुरुषों के चित्रों की. चित्रशालाबनवाइ. वहां राजपुत्रादि जो आवे वे अपना चित्र देख कर संतुष्ट होवे और वेश्या को संतुष्ट करे. इस वेश्याने अपनी बुद्धि से द्रव्योपार्जन किया सो वेश्या की बुद्धि. 3 एकदा राजा अपने मंत्री सहित अश्व पर आरूढ होकर वन क्रीडा करने गया था. वहां एक स्थान पर घोडेने लघुनीत की जिस से खड्डा 'पड कर वहां ही मूत्र स्थिर रहा. यह देख राजाने विचार किया कि यहां तलाव होवे भी अच्छा. परंतु .प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेक्सहायजी-ज्वालाप्रमादली. For Private and Personal Use Only