________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्ति भाणियव्वं से तं समोयारे // 62 // से किं तं अणुगमे ? अणुगमे नव बिहे पण्णत्ते तंजहा-संतपय परू पण या जाव अपबहुं चेव // 63 // संगम बवहाराणं आणवी दवाइं कि अधि पालिपियामा अस्थिाएवं दधिचि ॥णम क्वहाराणं आणुपुवी दवाई कि संखिजाई अ-जिजाई अणताइ? संविझा, निमाखिजाई को अणंताई, एवं दुकिवि !! गगनबहागणं खराबी दयाइ लोगस्य किं संखिज्जइ भागेअखिज्जइ भागे जात्र सव्वलोर होजाएगदव्य पडन्न लोगस्स विजइ भागे वा होजा,अखिजइ भाग वा होना,संखोसुभागसु वा होजा असंख मेसु भागे सुत्रा शेप दोनों का अपने स्थान में समवतार होता है, यह समवातर का कथन हुआ. // 62 // अहो भगवन् ! अनुगम किसे कहते है ? अहो शिष्य ! अनगम के नव भेद कहे हैं तयथा-सत्पद परूपना यावत् अल्पाबहुत // 63 अहो भावन् ! नैगम व्यवहार नय के मत से आनपूर्वी द्रव्य की क्या अस्ति है या नास्ति है ? अहो शिष्य ! नियम असि नास्ति नहीं हैं ऐसे ही शेष दोनों का कहना.. प्रश्नगप व्यवहार नय के मत से भानुपूर्वी द्रव्य व्या संरयात असंख्य त या अनंत है ? उत्तर-संख्यात व अनंत नहीं है परंतु असंख्शत है. ऐसे ही शेष दोनों का जानना. प्रश्न-नैगम व्यवहार नय के मत से आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात माग में, हैवेअसंख्यातवेभाग में है यावत् क्या सब लोक में होते हैं ? अर्य 18 अनुवादक बार ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिजी मशक राजाबहादुर लाला मुखदवस हायजी ज्वालामसादजी* For Private and Personal Use Only