________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 38+ * वैजयंतते, जयंनते, अपराजितए, ससिद्धय / एसिपि सम्बोलि अविससिए विलित पजत ' अपज तगा मेवा कालिया // 30 // आंबोनि अधीदने विसेसिए-धम्मत्यिकाए, अधम्मत्थिनाए, आगामधिकार पोग्गलथिका अडत समिए // 102 // अ.बसेलिए पालस्थिकाए, विससिए परमाणु शेगो, ग ए / तिपदेसए जाव अणंत पवेलियए, सेतं दुनामे // 10 // से नितिन ! तिनामे तिविहे पणते तं जहा--दाणा, गुण ,पाने / / 106 // संकि 3 अयंत, 4 पराजित व 5 सर्थ सिद्ध इन के भी अविशेष विशेषकमें पर्याप्त अपमान करना // 1.1 // अवशेष अजीद का विशेषक धर्मास्ति काया. अधति कापा. आकाशस्ति में काया. पुद्गलास्ति काया व अद्धासमय (काल)॥१०२ // विशेषक पुद्गलास्ति काया विशेषक-पग्माणु पदल, द्विप्रदेशिक स्कंध, तीम प्रदेशिक यावत् अनंत प्रदेशिक स्कंध यह द्विनाम का कथन हुवा // 103 / / अहो भगवन् ! तीन नाम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! तीन नाम तीन प्रकार से बक्षित किये गय हैं तद्यथा-द्रव्य नाम-गुणपर्याय धारन करनेवाले को द्रव्य कहते हैं। गुमनाम-द्रव्य व पर्याप की पहिचान 100 करनेवाले को गुण कहते हैं, और पर्याय नाम-जीव द्रव्य में ज्ञानादि गुणों का व उजव व्या वण 10 गुणों का परिवर्तन होवे उसे पर्याय कहते हैं / / 104 // अहो भगवन् ! द्रव्य नाम किसे कहते हैं / 488- एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल नाम विषय For Private and Personal Use Only