________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बालब्रह्मचारि मुनि श्री अमोलख ऋपिजी नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिइ पणता ?गोयमा! अइन्नेणं दसवास सहस्साई उकोसेणं तेतीसं सागरोबमाई, रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं भंते ! केवइयं काल ठिइ पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दस वास सहस्साई उक्कोसेणं एग सारगावम, अपजत्तगरयणपब्भा पुढवी नेरइयाणं भने ! केवश्यं कालं ठिई पण्णता?गोयमा ! जहन्नेणंवि अंत्तोमुहुत्तं उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं, पज्जतगरयण प्पभा पुढवी नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालंठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दस वास सहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एग सागविमं अंतोमुहुत्तं / / सक्करप्पभा पुढवी नेरइया अहो भगवान् ? समुचय नरक के जीवों की कितने कालकी स्थिति कही है ? अहो शिष्य ! जघन्य दश हजार वर्ष की उत्कृष्ठ तेंतीस सागरोपम की / / अहो भगवान् ! रत्नप्रभा नरक के नेरीय की कितनी स्थिति कही है ? अहो शिष्य ! जघन्य दश हजार बर्ष की उत्कृष्ट एक सागरोपम की. अहो भगवान् ! 'अपर्या नरक के नेरीएकी किनने काल की स्थिति कही है ! अहो शिष्य ! जघन्य उत्कृष्ट अन्तर मुहुर्त एसे ही प्रश्नोत्तर आगे भी सर्व स्थान जनना. पर्याप्त रत्नप्रभानरक के नेगये जघन्य षश हजार वर्ष अन्तर गर्म कर्व (यह अपर्याप्त अवस्था का अन्तर मुहुर्त कभी जानना ऐसे ही सर्व स्थान प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी अश For Private and Personal Use Only