________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir 418 एकाविशतम अनुयोगद्वार सूत्र-चतुप मूल 438 सिय धम्मपएसो, सिय अधम्मपएसो, सिय आगासपएसो, सिय जीवपएसो, सिय खंधपएसो, अधम्मपएसोवि, सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो जाव सिय खंधपएसो / आगासपएसोवि सिय धम्मपएसोवि जाव सिय खंधरएमोवि. जीव पएसोवि, सिय अधम्मपएसो जाव सिय खंधपएसो, खंधपएसोवि, सिय धम्मपएसो है आकाशास्ति की प्रदेश, जीव का पदेश और स्कन्ध का प्रदेश. या व्यवहार नय बोलते हुवे ऋजु सूत्र नयवाला बोला जो तू कहना है पांच प्रकार प्रदेश तैसा नहीं होता है क्यों कि यद्यपि वे पांच प्रकार के प्रदेश में से एकेक प्रदे: 1.6 प्रकार होवे तो यो 25 प्रकार होजावे. इस लिये पांच प्रकार प्रदेश कहो. प्रदेशों को अलग 2 कठोर विकल्पनीय विजातीय पांच भाग से यों स्यात् है धर्मास्ति प्रदेश, वे प्रदेश अपने 2 हैं यह सम्बन्ध की आस्ति नहीं, क्यों कि वे अपने काम नहीं आवे इस लिये वे इस के मन में नहीं, इस के मत से विकाल और पर सम्बन्धी वस्तु सर्वथा नहीं है. यह ऋजू सूत्र के भाव कहे. इस प्रकार ऋजू सूत्र नरवाले कोलते हुवे को शब्द नयवाला कहने लगा. जो तूने कहा प्रदेश का भेद कहना तैसा नहीं होता है. क्यों कि यदि प्रदेश के भेद जो तुमारे मत से होते धर्मस्ति काया के प्रदेश भी कदाचिन धर्मास्ति काया के प्रदेश हो स्यात् अधर्मास्ति के प्रदेश. स्यात् आकाशारित के प्रदेश. स्या अनीव के प्रदेश. स्यात् स्कन्ध के प्रदेश, 5. अधर्मास्ति काया के मदेश भी स्यात् धर्मास्ति का प्रदेश Mom प्रमाण विषय 488A8+ / For Private and Personal Use Only