________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 अनुवादकपाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अपोजक ऋषिजी समोआरेय चउसट्ठिया आयसमीतारेणं आयभावेसमोतरंत,तदुभयसमीतारेण बत्तीसियाए समोतरइ आयभावय, बत्तीसियायसमोतारणं आयभावे समोतरंति, तदुभयसमोतारेणं सोलसियाए समोतरेइ आयभावेय, सोलसियाय समोआरेणं आयभावेसमोतरेइ, तदुभवसमोतारेणं अट्ठभाइयाए समोतोइ आयभावेय, अट्ठभाइया आयसमोतारेणं आयभावसमोतरेइ, तदुभयसमोअरेणं चउभाइयाए समोअरेइ, आयभावेय, चउभाइया आयसमोतारेणं आयमावेसमोतरइ, तदुभयसमोतारेणं अडमाणीए एकत्र लिखे वह तदुभय समवतार, तथा जैसे घडा में ग्रीवा नाल र नालव घडे पर है और पहा पडे के भाव में है आत्म भाव है. अथवा जय शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त जो द्रव्य समवतार दो प्रकार कहा है तद्यथा-आत्म समवतार, और उभय समवतार. चउसठीये चार पल के मान में आत्म भाव समय तार आत्म भाव में समयतरे, बत्तीसीये आत्म पल्य के मान में आत्म भाव में समवतरे. आठ पल के बत्तीसीये आत्म स्वरूप में समवतरे वे उभय समवतार प्रवर्ने सोलह पल में समवतरे वा सोलह / आत्म भाव समवतार तदुभय समवतार. अठभाइया वे बत्तीस पल में समवनरे आत्म मावई आठ भाईये स्वयं अपने स्वरूप में प्रवर्ते यह तय समवतार. चउभाइये चौसठ पल में समवतरे यह दोनों के आत्म भाव चउभागिक आत्म समवतार, आत्म समतो वह नभय में समवसरे. 128 पल्य अर्धमानी प्रकाशक-राजाबहादुर गला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी. For Private and Personal Use Only