________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपसंहार-(गाथा) सोलस सयाणि, चउरूत्तरााण होइउ इमंमि गाहाणं // दुसहस्स मणुहम छंद,सुत्तपरिमाणउ भाणिउ॥१॥नगर महा दाराइव, उवक्रम दाराणुउग्गवरदारा // अक्खर विंदु मत्ता, लिहिया दुक्खे खयट्ठाएं // इति श्री अनुयोगहार सूत्र समाप्तम्. // 13 // * * * * * अर्थ अनुवादक बाल ब्रह्मचारा मुनि श्री अमोलक ऋषिजी* विस्तारित वक्तव्यता कहने में बहुत समय चाहीये. सक्षेप में सातों नय का निश्चय व्यवहार में समावेश हो जाता है, 4 निक्षेप, 4 द्रव्यादि, इन पर्याय अर्थ नय में सुनकर उन सब नय को निर्दोष नय रूप प्ररूपे, जानने योग्य जाने, छोडने योग्य छोडे, आदरने योग्य आदरे इस प्रकार जो चारित्र में स्थिर रहा साधु ज्ञानादि युक्त विशुद्ध नय को समाचरे॥यह अनुयोग का स्वरूप दर्शाने वाला अनुयोगद्वार सूत्र संपूर्ण हुआ।। उपसंहार इस अनुयोगद्वार की 1604 गाथा 2000 श्लोक सूत्र का प्रमान कहा है. टवाका प्रमान 6000 सब ग्रन्थाग्रन्थ 8000 // 1 // यह अनुयोग द्वार सूत्र बडे नगर के द्वार समान इस में प्रवेश करने से उपशम ज्ञान नय महापदार्थ की प्राप्ति होवे. इस की अक्षर विन्दु मात्रा शद्ध लिखने से में सर्व दुःख का क्षय होवे // यह दोनो गाथा प्रकरण की जानना // अनुयोग द्वार सूत्र अर्थागमणे चितीयं साहुण धम्मसिंहेण साता सुहस्सहेतवे // इति अनुयोग द्वार मत्र समाप्तम् // 31 // + + + * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only