________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र पच्चुपण्णगाहिउज्जु-सुउणय विहीमुणेयन्वो // इच्छेइ विसेसाअंतरं पच्चुपन्न उसद्दो // 3 // वत्थुउ सकमणं होइ, अवत्थुनए समाभरूढे // वंजण अत्थ तदुभयं, एवं भूउ विसेसेइ // 4 // एगयमिगिव्हियत्वे आगीहियमि चेव अत्थंमि // जइ अव्व. मेवइ इज्जो, उवएसो सो नउनाम // 5 // सव्वेसिपि नयाणं, वत्तव्वं बहुविहं निसामित्ता॥तं सव्वनय विसुद्ध,जं चरणगुणटुिओ साहु // 6 // अणुउगदारा सम्मत्ता // 48 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल. <P987 48808080P प्रमाण का विषय 8 अर्थ र व्यवहार नय से सब जीव अजीव में प्रवर्ते 4 ऋजुसूत्रनय-दर्तमान काल वस्तु में प्रवते ग्रहणहार ऋजुसूत्र से न्य जानना. ऋजु-सरल वर्तमान काल में मानें. अतीत अनागत को नहीं माने 5 शब्दनय ऋजसूत्र से माने द्रव्य भी माने. वर्तमान में भाव निक्षेप माने. 6 समाभि रुढनय. जो संक्रम काष्ट करे, शब्द का अर्थ जिस वक्त उस में पावे उसवक्त उसे माने, इन्द्र के रूप कर इन्द्र कहा शक्र के रूप शक्र कहे. शब्द नय में इस में इतना फरक जानना. 7 एवंभूत नय वाला घट जो मस्तकारुढ हुवा घट 2 शब्द करे, तब घट कहे // 4 // इन नयोंकर ग्रहन करने योग्य ज्ञान दर्शन युक्त क्रिया अनुष्ठान. अनादरणिय मिथ्यात्वादि हेतू इत्यादि का जान होवे. ज्ञानादि की यथाविधी यत्ना करे, मिथ्यात्वादि * छोडने का उपाय करे शुद्ध उपदेश में प्रवते. अहो शिष्य ! उसे नय कहना // 5 // सर्व नय की 00 For Private and Personal Use Only