________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्न अर्थ / 01 अनुवादक बालब्रह्मचारि मुनि श्री अमोलख ऋषिजी // 18 // से किं तं नए ? सत्त मल नया पण्णत्ता तंजहा-णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुए, सद्दे, समभिरुढे,एवंभूत // (गाहा)तत्थणेगमेहिमाणेहिं मिणइ, इति णेगमस्सय निरुत्ती, सेसाणंपि नयाणं लक्खणमिणमो सुणह बोच्छं // 1 // संगहिंअपडिअत्थं, संगहवयण समासओवित्ति // वच्चइ विणित्थिअत्थं, ववहारो सन्त्र दवेमु // 2 // कहते है ? हे शिष्य ! मूल नय सात कही है. जिन के नाम-१ नैगमनय, 2 संग्रहनय, 3 ब्यारनय, ऋजमत्रनय, 5 शब्दनय, 6 सपभिरुढ नय, और 7 एवंभूतनय. इन सात नय मे से प्रथम नेगम नय सो- सामान्य विशेष शब्द में विशेषन कर वस्त को जाने वस्तु का निर्णय करे. लोक में रहता हूँ इत्यादि प्रश्नोत्तर पूर्वोक्त प्रकार जानना. और भी जीव द्रव्य जीव द्रब्य के दो प्रकार-संसारी और असंसारी इत्यादि बोल जानना. इत्यादि आगें छही नय का उदाहरण लक्षण सनो // 1 // संग्रह नय सम्यक प्रकार से ग्रहण किया एक जाति रूप अर्थ वह संग्रहित पंडितार्थ बचन बहना ऐसा संग्रह नय का बचन संक्षेप से तीर्थकरने कहा. अर्थात् संग्रह नय वाला सामान्य रूप को ही मानता है जैसे 'एगे आया सर्व आत्मा को एक ही रूप जाने. 3 ब्यवहार नय विशेष निश्चय अर्थ लोक व्यवहार प्रसिद्ध पांचो वर्ण के वस्त्र मे रक्तवर्ण अधिक होतो लोक व्यवहार में रक्त वस्त्र ही कहे. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only