Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 347
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोगुत्तरिए // से किं तं लोइए ? लोइए तिविहे पण्णत्ते तंजहा–सचित्ते अचित्ते मीसएय // से किं तं सचित्ते ? साविते तिविहे पण्णत्ते तंजह-दप्पयाणं, चउपयाणं, अप्पयाणं / दप्पयाणं दासाणं, चउप्पयाणं आसाणं, हत्थीणं; अप्पयाणं अंबाणं अबाडगाणं,जाए।सेतं सचित्ते॥से किं तं अचित्ते?अचित्र सवण्ण रयण मणि मोत्तिय संख सिलप्पवाल रयणागंयाए सेतं अचित्ते // से किं तं मीसए ? मीसए दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरिया उज्जालंकियाणं आए से तं मीसए लोइए // 1 E: द्विपद. 2 चतुष्पद, और 3 अपद. इस में द्विपद में तो दासादि, चतुष्पद में हस्ति आदि, अपद में अम्ब अम्बाडगादि, यह सचित्त हुवा. अहो भगवन् ! अचित्त लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अचित्त सो सुवर्ण, रत्न, मणि, मोती, दक्षिणायत शंख, सिल्प, प्रवाल, रत्नादि का लाभ. यह अचित्त लाभ हुवा. अहो भगवन् ! मिश्र लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! मिश्र लाभ सो दास, दासी. अश्व. हस्ति, इत्यादि वस्त्र भूषणादि कर विभूषित किया उस का लाभ सो मिश्र लाभ. और यह लौकिक लाभ हुवा अहो भगवन् ! कुमावचमिक लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! कुमावनिक लाभ तीन प्रकार का कहा है, तद्यथा-१ सचित, 2 अचित्त और 3 मिश्र. इन का कथन जैसा लोकिक का * कहा तसा कहमा यावत् यह मिश्र का कहा और यह कुप्रावचनी कहा अहो भगवन् ! लोकोत्तर --09 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्रीअमोलफापज प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमादजी* , For Private and Personal Use Only

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